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________________ गाषा : ६५० से १४६ नरतियंग्लोकाधिकार सुपा। सुप्रकीर्णा यशोषरा लक्ष्मीः शेषवती चित्रगुप्ता वसुन्धरा इत्यो देव्यः प्रमोघमय स्वस्तिकं कूटं ॥५१॥ तो। ततो मदर हैमवतं राज्य राज्योत्तमं चन्द्रमपि सुरक्षनमित्यष्टौ ८ पश्चिमविक्कूटानि सत्र स्थिता वेण्यः इलायती सुरायो ।। ६५२ ॥ पुरुयो । पृम्बी पावतो एक्षमासा देवी नवमिका सोसामना इस्यष्टोता देव्यः । ततो विषयजयन्तजयन्तापरागितामीति सस्मारिकूटानि कुण्डलं मकं ॥ ५३॥ तो। ततो रनवर सरिस्ममिस्यष्टौ ८ उतरविक्कूटानि, तत्र स्पितास्तु देव्यः पलंसूषा मिसकेशी वेवी पुपरीकिरणी ॥ १४ ॥ वाणि । मारणो प्राशासस्या हो भीरयष्टौ वेश्यः । एतासु तावत्पूर्नपतविपकुमार्यो नृङ्गार धृत्वा इह वक्षिणव्यो मुकुन्द षत्वा ।। ६५५ ।। पनिछ । पश्चिमदिग्गता वेयरछत्रयं पुत्वा उत्तरविणता वेग्पश्चामराणि घरवा प्रमोरमुता सत्यस्ता सा देख्यो जिनजननकाले तीयंकरजननीसेवा प्रकुर्गते ॥ ६५६ ॥ गापार्थ : दक्षिण दिशा में { स्फटिक, २ रजत, ३ कुमुद, ४ नलिन, १ पद्म, ६ शशि, ७ वैववरण पोर ८ वडूयं ये साठ कट हैं। इनमें कम से इच्छा, समाहारा. सुप्रकोण, यशोषया, लक्ष्मी, शेषवतो, चित्रगुप्ता और वसुन्धरा ये आठ देवांगनाएं रहती हैं तथा १ अमोध, २ स्वस्तिक कूट, ३ मन्दर, ४ हैमवत, ५ राज्य, ६ राज्योत्तम, " चन्द्र और ८ सुदर्शन ये पश्चिम दिशा के आठ कर है और इन पर कम से इलादेवी, सुरादेवी, पृथ्वी, पद्मावती, एकनासा, नवमिका, सोता और भद्रा ये आठ देवकुमारियो रहती हैं। इसके बाद १ विजय, र वैज पन्त, ३ जयत, ४ अपराजित, ५ कुण्डल, ६ चक, रत्नवत् पौर ८ रल ये उत्तर दिशा सम्बन्धी माठ कूट हैं इनमें कम से बलभूषा, मिश्रकेशी, पुणरी किणी, वारुणी, आशा, सत्या, हो और धो ये आठ देव कुमारिया निवास करती है। पूर्व दिशा सम्बन्धी देवकुमारियाँ भृङ्गार धारण कर दक्षिणगत देखियो मुकुरुग्द (दर्पण), पश्चिमयत देवियाँ तीन छत्र और उत्तरगत देवियां चमर धारण कर महाप्रमोद से युक्त होती हुई तीर्थङ्कर के जम्मकास में तीर्थङ्कर की माता की सेवा करती हैं ।। १५० से १५६ ।। विशेषायं :-वक्षिण दिशा में सटिक कूट में इच्छा नाप को देवकुमारी वास करती है। रजत कट में समाहारा, कुमुद में सुप्रकीर्णा नलिन में यशोधरा, पल में लक्ष्मी, शशि में शेषवती, वश्रवण में चित्रगुप्ता और वैडूर्य में वसुन्धरा ये आठ देवांगनाएं रहती हैं। ये आठों देवकुमारियां हाथ में दर्पण लेकर माता की सेवा करतो हैं। पश्चिम दिशा के अपोष कट में इलादेवी, स्वस्तिक में मुगादेवी, मन्दर में पृथ्वी, हेमवत में पद्मावती, राज्य में एकनासा, गग्योत्तम में नबमिका, चन्द्र में
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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