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________________ पापा : ९४८ से १५१ नरतियंग्लोकाधिकार दिशामों में चाय कट हैं । अर्थात् प्रत्येक दिशा में एक एक कट है । इन चारों कूटों के अभ्यन्दर चार कूट हैं जो एक एक दिशा में एक एक है। इस प्रकार प्रत्येक दिशा में आठ कूटों के अभ्यन्तर में तीन तीन कूट और हैं जिनमें चार सर्व अभ्यन्तर कूट जिनेन्द्र सम्बन्धी हैं। अर्थात् इन चारों कटों पर जिनेन्द्र भवन हैं, देवियों का वास नहीं है। कणयं कंषण तवणं सोषियकूहं सुमहमंजणयं । अंबणमूलं व तत्थेदा दिक्कुमारी भो ।। ९४८ ।। विजयाय वहजयंती जयंति भवरजिदाय गंदेसि | गंदवदी गंदुचर गामांतो गंदिसेोचि ||९४९|| कनक काश्चन तपनं स्वस्तिककूटं सुभद्रम जनकं । असन मूलं बच्चतता दिक्कुमार्यः ॥ ९ ॥ विजया वैजयन्ती जयन्ती अपराजिता नादा इति । नन्दवती नन्दोत्तरा नाम्नामन्ते नन्दिपेरणा इति ॥ ४ ॥ करणयं । कनक काश्चनं तपनं स्वस्तिककट सुभामजनक प्रब्लममूलं घनमित्येतानि पूर्वरिश्यो कटामि। ता पने वक्ष्यमाणा विक्कुमार्यो निवसन्ति ।। ६४८n विजया। विजया वंजयन्ती जयन्यपरामिता नवा नन्ववती नम्बोत्तरा नविषेरणेमहौता दियकुमार्यः ॥ ४६॥ गाचार्य:-रुचक पर्वत के ऊपर पूर्व दिशा में १ कनक, २ काखन, ३ तपन, ४ स्वस्तिक कूट, ५ सुभद्र, ६ असनक. ७ अन्जानमूल और वन नाम के फूट है, जिनमें कम से विजया, वैजयन्ती, जयन्ती, अपराजिता, नन्दा, नन्दावती, नन्दोत्तरा और नन्दिषेणा ये आठ देव कुमारिया निवास करती है || EYE, ४६ विशेषा:-कचक पर्वत के ऊपर पूर्व दिशा के कनक कट में विजया काश्चन में वैजयन्ती, तपन में जयन्ती, स्वस्तिक में अपराजिता, सुभद्र में नन्दा, अजनक में नयावती, अखनमूल में नन्दोत्तरा और बजट में नन्दिषेणा देवकुमारी निवास करती है। ये भङ्गार धारण कर माता को सेवा करती हैं। फलिइ रजदं व कुमुदं गलिणं पउमं ससीय सवर्ण । वेलुरियं देवीमो इच्छापढमा समाहारा ।। ९५. ।। सुपइण्णाय जसोहर लच्छी सेसवदि चिचगुचोति । चरिम वसुंधरदेवी ममोहमह सोस्वियं कूडं ।। ९५१ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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