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________________ ७ त्रिलोकसाथ पापा: ALol . and 84 इवानी रुचकोपरिमकूटानि तन्निवासिनीदेवीस्तकृत्यं च त्रयोदशगाथाभिराह पुष्वादिसु पुह मा मह अते चउ चारि चारि कूडाणि । रुजगे सन्वन्मंतरचचारि मिणिंदकूडाणि ॥९४७ ।। पूर्वादिषु पृथक अष्टौ अष्टो अन्तः चतमृषु चत्वारि चत्वारि कूटनि । रुचके सर्वाभ्यन्तरचत्वापि जिनेन्द्रकूटानि ॥४॥ पुड्या । चकगिरी पूर्वादिषु चतसषु विक्षु पृथक् पंहितामेरणादायको कूटानि । तेषामभ्यन्तरे चतम बिच एकवारं चत्वारि फूटानि । तवयम्तरे पुमरप्येकवार परवारि फूटानि तबम्यन्तरे व पुमरप्येकवारं घरवारिकूटानि एषमभ्यस्तो प्रतिविक बोरिण त्रीणि कूटानि सेषु सर्वाभ्यन्तराणि पत्यारि जिनेखकूटानि ॥ ६४७ ॥ अब रुचक पर्वत के ऊपर स्थित कट, उनमें निवास करने वाली देवांगनाएं बोर उम देवांगनाओं के कार्य तेरह गाथाओं द्वारा कहते हैं: गाथार्थ :-रुचक गिरि पर्वत के ऊपर पूर्वादि चारों दिशाओं में पृथक पृथक आठ आठ कर हैं। जिन अभ्यस्तर को ओर चारों दिशाओं में चार कूट हैं। उन चार कूटों को अभ्यन्तर चार दिशाओं में पुनः चार कूट है और सर्व अभ्यन्तर चार दिशाओं में चार जिनेन्द्र कूट हैं ।। ९४५ ।। विशेषार्थ:-चक पर्वत पर पूर्व, दक्षिण, पविचम और उत्तर हन चार दिशाओं में से पृथक पृथक् दिशा में पंक्ति कम से अर्थात पंक्ति बद्ध आट बाट कूट हैं। इन आठ कूटों की मम्वन्तर चारों
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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