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बाबा : ६४४ से ३४६
मति ग्लोकाधिकार
च। इह कुण्डलपर्वतस्य शिखरे प्रतिदिशं बाधारि ४ अरवारि ४ कूटानि । सेवामस्यारदिग्गतानि चत्वारि ४ जिनेवानि ॥ २४४ ॥
व वा वज्रप्रभं कनके कनकप्रभं जलकूट रजताभं सुप्रभं महामने मधङ्कप्र मणिकूटं मणि ॥ ६४५ ॥
दजग। रुच दचका हिमवत् मम्बरं ४ एम्प: कूटेम्पः सकाशादन्यानि दह चत्वारि सिद्धदानि सन्ति । शेषकूटेषु १६ फूटायाः सुराः कृतावासा मूल्या प्रासते १६ ॥ ६४६ ॥
जव कुण्डल गिरि के ऊपर स्थित कूटों को तीन पाथाओं द्वारा कहते हैं
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गावार्थ :- इस कुण्डल गिरि के शिखर पर एक एक दिशा में चाय पात्र कूट हैं। इनके अभ्यन्तर की ओर चारों दिशाओं में | एक एक ) चार फूट जिनेन्द्र भगवान सम्बन्धी है उनके नाम१ वज्र, २ वज्रप्रभ, ३ कनक, ४ कनकप्रभ, ५ रजतकूट, ६ रजताभ ७ सुप्रभ महात्रम, १ म १० अङ्कप्रभ, ११ मणिकूट १२ मणिम १३ रुचक १४ रुचकाभ, १५ हिमवत और मन्दर ये सोलह कूट है । अभ्य चार सिद्धकूट हैं जिनमें भगवान के वैश्यालय हैं। अवशेष १६ कूटों में अपने अपने फ्रूट
नाम वाले देव निवास करते हैं ।। 8९४५ ४६ ।।
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विशेषार्ग:- इस कुण्डलविषि के शिखर पर पूर्व दिशा में वज्र वध्र्वप्रभ कनक और कनकप्रभ
ये चार एवं एक सिद्ध कूट इस प्रकार कुल पाँच कूट हैं। इसी प्रकार दक्षिण में रजतकूट, रजताभ, सुप्रभ, महाप्रभ जी एक सिद्धकूट पश्चिम में मङ्क अङ्कप्रभ, मस्किट, मणिप्रभ और एक सिद्धकट तथा उत्तर में रुचक, रुचकाभ, हिमवत्, मन्दर और एक सिद्धकूट है। इस प्रकार कुल कूट २० हैं। जिनमें ४ सिद्ध कूटों में बेस्यालय हैं और अवशेष सोलह कूटों में अपने कूट नाम घाची देव निवास करते हैं । यथा :