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त्रिलोकसार
पाया : ३२६-१४०
मसु । मानुषोंसोयसुमुखण्यासाः क्रमेण एकविध सिसम तो सरसहयजमान १७२१ प्राविधिक सहस्र योजनानि १०२२ चतुविशत्युत्तर चतुः शतयोजनानि ४२४ भवन्ति ॥ ९३८ ॥
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पापा : - मानुषोत्तर पर्वत का उदय, न ध्यास और मुख व्यास कमशा एक हजार सात सौ इक्कीस योजन, एक हजाब जावीस योजन और चार सौ चोबीस योजन प्रमाण है ।। ९३८ ॥
विशेषा:- मातृषोवर परंत की ऊंचाई १७२१ योजन, भू व्यास अर्थात् मूल में चौड़ाई १०११ योजन और मुख व्यास अर्थात् ऊपर की चौड़ाई ४२४ योजन प्रमाण है, तथा इसकी नींव 13 ४३० भोजन १ कोश है ।
तण्णग सिहरे वेदी चागं चदुसरा |
सोss वलयायारा चरणण्णिदकोस वित्थारा ।। ९३९ ।।
गशिखरे वेदी चापानां चतुः सहस्रतुङ्गयुता । शोभते बलयाकार चरणान्वितको विस्तारा ।। ६३६ ॥
सरग | सम्मानुषोत्तरमगस्य शिखरे पापानां चतुः सहस्रतुङ्गता चतुर्थांशान्बितकोश विस्तारा २५०० वलयाकार वेदी शोभते ॥ ९३६ ॥
गाथा: -- उस मानुषोत्तर पर्व के शिखर पर चार हजार धनुष ऊंचो श्रोर सवा कोस (१३) चौड़ी वखयाकार वेडी शोभायमान है ।। ६३ ।
अधा स्थितानि कूटानि कथयति
मइरिदिवायव्यादिसं वञ्जिय बस्तुनि दिसासु कूडाणि । तियतिमावलियाए वाण मंतर दिसासु चजवसई ।। ९४० ।।
नैऋती वायव्य दिशं वर्जयित्वा षट्स्वपि दिशासु कूटानि । त्रित्रिकमावल्या तेषामभ्यन्तर दिश। सु चतुष्क व सत्यः ।। ९४० ।।
हवाय च दिशं वर्जयित्वा षट्स्वपि विशासु पंक्तिक्रमेण श्रीणि त्रीणि फूटामि सन्ति । तेषामभ्यन्तरविशासु चतुरस्रा वसत्यः सन्ति ॥ २४० ॥
अब इस पर्वत के ऊपर स्थित कूट कहते हैं।
गावार्थ:-स्य और वायव्य इन दो विदिशाओं को छोड़ कर अवशेष यह दिशामों में पंक्तिरूप तीन तीन फूट हैं तथा उन कूटों के अभ्यन्तर की ओर चार दिशाओं में चार वसतिका हैं ॥ ६४० ॥
विशेषार्थ :- उस मानुषोत्तर पर्वत पर ऋश्म और वायव्व इन दो दिशाओं को छोड़ कर