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ग्लोकाधिकार
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तिर्यग्लोक का प्रतिपादन करते हुए आचार्य मनुष्य और तिर्यग्लोक में स्थित पर्वत एवं समुद्रों का गाध - अववाह कहते हैं
गाथा: ३३७-६३८
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गाथा - पतों का और नवलोक के बाह्य भाग में स्थित सम्पूर्ण पर्वतों का अवगाव एक हजार योजन प्रमाण है। शेष पर्वतों का गाध अपनी ऊंचाई के चतुर्थ भाव प्रमाण है । सर्व समुद्रों का अत्रगाह- गहराई भी १००० योजन प्रमाण ही है ।। ६३६ ॥
विशेषार्थ : – मे पर्वतों का और मानुषोत्तर बिना मनुष्यलोक के बाह्य भाग में स्थित सर्व पर्वतों का अर्थात् मे पर्वत और बढ़ाई द्वीप के बाहर के सर्व पर्वतों का गाव (नींव या जमोन के भीतर पर्वतों की गहराई ) १००० योजन जानना चाहिए तथा मनुष्य लोक के अभ्यस्सर भाग में स्थित हिमवन् आदि पर्वतों का अवगाव अपनी अपनी ऊंचाई के चतुर्थ भाग प्राण है । स समुद्रों की गहुबाई भी १००० योजन प्रमाण है ।
अनन्तरं मानुषोत्तर स्वरूपं गाथायेणाह :
अंते कच्णि माहिं कमवद्धिहाणि कणयणिहो । दिणिग्गमपचादसगुदाजुदी मारगो ।। ९३७ ॥ अन्तः टङ्कच्छिलो बाह्यं श्रमवृद्धिहानिकः कनकनिभः । नदीनिगं मपथचतुर्दश गुहायुत। मानुषोत्तरः ॥ ३७ ॥ अंते । अभ्यन्तरे दो बाह्य शिखरा कमवृद्धः मूलाय नवनिर्गमाहाभिर्वृतो मानुषोत्तरापर्शलो ज्ञातव्यः ॥ ९३७ ॥
अब मानुषोत्तर पर्वत का स्वरूप तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं :
गाथा: - पुष्कर द्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है। वह अभ्यस्व में टङ्कचिन्न और वाच भाग में कमिक वृद्धि एवं हानि को लिए हुए है। स्वयं सह वर्ण वाला एवं नदी निकलने के
गुफाकारों से युक्त है ।। ३७ ।।
विशेषार्थ :- पुरुकर द्वीप के मध्य में मानुषोत्तर नाम का पर्वत स्थित है। वह अभ्यन्तरमनुष्य लोक की ओर टछि अर्थात् नीचे से ऊपर तक एक सदृश है तथा बाह्य तिर्यग्लोक की ओर शिखय से श्रमिक वृद्धि और सूख से क्रमिक हानि को लिए हुए है। उसका व स्वर्ण सदृश है तथा महानदियों के निर्गम स्वरूप चौदह गुफाद्वारों से युक्त है। मसुचरुदयभूमुहमिगिवीसं सगस्यं सहस्सं च । यात्रीसहियसहरू चयीसं चउसयं कमसो || ९३८ || मानुषोत्तरोदय भूख मेकविशं सप्तशत सहस्र च । द्वाविणाधिकसहस्र चतुविशतिः चतुःशतं क्रमाः ॥ ३३८ ॥
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कम हानियुक्तः कनकनिभः