SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 772
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्रिलोकसार गामा ६३६ धावई पासकोड पुष्करहोपो घातकीपुष्करतरुम्या संयुक्तौ तयोव योगा पुनम्बूवर्णनाद्भवेत् ॥ ६३४ ॥ ७२८ धार। बालकखण्डस्थपङ्गासिन्धू रक्तारतोदे नखौ ययासंख्यं हिमवच्छारिनगयो परि नवनभस्त्रिनवाोत्तरेकयोजनानि १६३०६ ऋजु यातः चलनाविकं पुनम्बूद्वीपयत् ज्ञातव्यं । पुष्करद्वीपे पुनगोपरि नवीगमनं एतस्माद्विगुणं शातव्यं २६६१८ ॥ ३५ ॥ ॥ एव नश्लोको व्याख्यातः U ar araat ass और पुष्कराधं द्वीपों का कुछ विशेष स्वरूप दो गाथाओं द्वारा कहते हैं : गामार्थः – घातकी खण्ड और पुष्कर द्वीप क्रमशः घातकी और पुष्कर वृक्षों से संयुक्त हैं। इन मां वृक्षों का वर्णन जम्बूदीपस्य जम्बूवृक्ष के वर्णन सदृश ही होता है । घातकी खण्ड सम्बन्धी गंगासिन्धु और रक्ता रक्तोदा क्रमशः हिमवन और शिखरी पर्वत पर उनीस हजार तीन सौ नो योजन सोधी जाती है। इसके आगे उनके मोड़ आदि का वर्णन अम्बूद्वीप सद्दश है। पुष्करार्ध द्वीप में पर्वत के ऊपर नदियों का सीधा गमन दुगुना अर्थात् ३८६१८ योजन है ।। ६३४, १३५ ॥ विशेषार्थ :- -घातकी खण्ड द्वीप घातकी वृक्ष मे और पुष्करार्ध द्वीप पुष्कर वृक्ष से संयुक्त हैं । इन दोनों वृक्षों का वरन जम्बूद्वीप के जम्बूवक्ष सदृश हो है । घातकी खण्डस्थ गङ्गा सिन्धु नदियाँ हिमवत् पर्वत पर १६३०६ योजन नीर रक्ता रक्तोदा शिखरी पर्वत पर १६३०६ योजन सीधी जाती हैं। इसके बाद इनके मोड़ आदि का वर्णन अम्बूद्वीप सम्बन्धी गंगा सिन्धु आदि के सट्टा ही है । पुष्कर प में इन्हीं नदियों का पर्वत के ऊपर सीधा गमन ३८६१८ योजन प्रमाण है । इस प्रकार नरलोक का व्याख्यान समाप्त हुआ । इदानीतियंश्लोकं प्रतिपादयन् तावदुभयत्रापि स्थितानां शेलार्णवानां गाधं बोषयति-मेरुणरलोय बाहिरसेलागाढं सदस्सपरिमाणं | साणं समतुरियं सम्वद्दीणं सहस्सं तु ॥ ९३६ ॥ मैदनरलोकबदलाव गावं सहस्रपरिमाणं । . शेषाणां स्वयं सर्वोदधीनां सहस्र ं तु ॥ ९३६ ॥ मेरा । मैदनगस्य मानुषोत्तरं वर्जयित्वा मरलोकबहिः स्थानां' शेलामाम वगार्थ सहस्र २००० परिमाणं ज्ञातव्यं तदभ्यन्तरहिताना शेषारण हिमद वा बिलानामवगामः पुनः स्वकीयस्वकीयोचतुर्थांशो ज्ञातव्यः । सर्वेषामुदधीनामवगाधं तु सहस्रयोजनं जानीयात् ॥ ३६ ॥ १ मध्येषां च ( प० ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy