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पाया : २४१-२४२
नरसिग्लोकाधिकार
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अवशेष छह दिशाओं में पंक्ति स्वरूप तीन तीन कूट हैं तथा उन कूटों के अभ्यन्तर अर्थात् मनुष्य लोका की ओर चार दिशाओं में चार वसतिका अर्थात् जिन मन्दिर हैं।
अथ तस्कूटवासिदेवानाह
माणकूडे गरुडकुमारा वसंति से दु । दिग्गयवार सकूडे सुष्णकुलादेवकुमारी भो ।। ९४१ ॥ अग्नीशान षट् कूटे गरुडकुमारा वसन्ति शेषेषु तु । दिग्गतद्वादशकटेषु सुवर्णकुलदिक्कुमार्यः ।। ९४१
धनेशानविकस्येषु षट्सु कटेषु गरुडकुमारा वसति शेषेषु पुनविद्वाशकूटेषु सुपसंकुल दिवकुमार्यो वसन्ति ॥ १४१ ॥
उन कूटों में बसने वाले देवों को कहते हैं।
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नाथार्थ :- आग्नेय और ईशान दिशा सम्बन्धी छह कूटों में गरुड़कुमार देव तथा अवशेष दिशागत बारह कूटों में सुवर्णकुमार देव एवं दिक्कुमारी देवांगनाएं निवास करती है || ६४१ ॥
अथ मानुषोत्तरस्य स्थानादिकमाह
पणदाललक्खमाणुमखेषं परिवेदिऊण सो होदि । उदय चवत्थोगाढो पुक्खरविदियद्धपदमहि ।। ९४२ ॥ पचचरत्र शिल्लक्ष मानुषक्षेत्रं परिवेष्ट्य स भवति । उदय चतुर्थावगाधः पुष्करद्वितीया प्रथमे ॥ ९४२ ॥
पण | पचोत्तर बारिशएलसयोजन ४५००.०० प्रमितमानुषक्षेत्रं परिवेषु
स्य प्रथमभागे स मानुषोत्तरो भवति । तस्यावगान: उदयचतुषः ४३०३
॥
पुष्करद्वीप द्वितीया
४२ ॥
आगे मानुषोत्तर पर्वत का स्थान आदि कहते हैं :
गाथार्थ :- पुष्कर द्वीप के द्वितीय अर्थ भाग के प्रथम भाग में, ४५००००० योजन प्रमाण मनुष्य लोक को वटित किए हुए मानुषोत्तर पर्वत है। जिसका अगाध ऊंचाई का चतुर्थ भाग
प्रमाण है ।। ६४२ ॥
विशेषार्थ : - ४५००००० योजन प्रमाण मनुष्य लोक को घेरे हुए पुष्कर द्वीप के द्वितीय अर्थ भाग के प्रथम भाग का जो आदि क्षेत्र है उसमें मानुषोत्तर पत है। इसकी नींव गाव ऊँचाई का चतुर्थांश अर्थात् (२) ४३०१ योजन है ।
अथ कुण्डलकाच लयोरुदयादित्रयमाह