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________________ ७०४ त्रिलोकसार पाथा ९९१ चन्दर मुख मनुष्य रहते हैं तथा हिमवत् कुलाचल, भरत वैद्यालय, शिखरी कुलाचल और ऐरावतवैशालय इन चारों के मस्तक पर स्थित द्वीपों में अर्थात पर्वतों की दिशा में भीनमुख, मेषमुख, मेघमुख और दर्पणमुख मनुष्य रहते हैं। पर्वतों की पश्चिम दिशा में कालमुख, गोमुख, विद्युत्मुख और हाथीमुख मनुष्य पहले हैं। उपर्युक्त सभी मनुष्य वृक्षों के नीचे निवास करते हैं और कल्पवृक्षों द्वारा प्रदत फलों का भोजन करते हैं । यहाँ जन्मादिक की सर्व प्रवृत्ति जघन्य भोगभूमि सहश है। उपयुक्त सभी मनुष्यों का जो कर्ण एवं मुख आदि का विशेष आकार कहा है उसके अतिरिक्त उनका सम्पूर्ण आकार मनुष्य ही है। तेषां षण्णवतिद्वीपानां संरूपाया विशेषविवरणमाह चडवीसं चडवीसं लक्षणदुतीरे कालदुतडेवि । दीवा तावदियंतरवासा कुणरा वि तष्णामा ।। ९२१ ।। चतुविशं चतुर्विंश लवाद्वितीरयोः कालद्वयोरपि । दीपाः तावदन्तरण्यासाः कुनरा अपि तत्रामानः ॥ ६२१. ॥ भजवी । लवण समुद्रस्य द्वयोरसोरयोः चतुविशतिः चतुविशतिहार कालोवकसमुहस्य पोस्टयोरपि पालटावन्तराणि व्यासाच लवर समुद्र बतावतः । राजस्थाः कुन प्रपि तद्वीपसमानमामानः स्युः ६२१ ॥ उन १६ द्वीपों की संख्या का विशेष विवरण कहते हैं :-- गाथायें :- लवण समुद्र के दोनों तटों पर चौबीस चौबीस तथा कालोदक समुद्र के दोनों तटों पर भी चौबीस चोबीस द्वीप है। यहाँ कालोदक सम्बन्धी द्वीपों का अन्तर और व्यास उतना ही है जितना लवण समुद्र गत द्वीपों का है। उन सभी द्वीपों में स्थित कुमनुष्यों के नाम अपने अपने द्वीप सहा ही है ।। ६२१ ॥ विशेषार्थ :- लवण समुद्र के बाह्याभ्यन्तर दोनों तटों पर चोबीस चौबीस और कालोदक समुद्र के दोनों तटों पर भी चौबीस चौबीस द्वीप हैं। इनमें दिशा, विदिशा और अन्तर दिशा सम्बन्धी हो तो सर्वत्र अर्थात् चारों तटों की दिशाओं, विदिशाओं एवं अन्तर दिशाओं में ही हैं, किन्तु पर्वत सम्बन्धी द्वीप लवण समुद्र के अभ्यन्तर तट पर तो बम्बूद्वीप सम्बन्धी पर्वतों के दोनों अन्तिम भागों में स्थित है तथा लवण समुद्र के बाह्य तट पर और कालोदक के अम्पस्तर तट पर घातकी खन्ड सम्बन्धी पर्वतों के एक एक अन्तिम भाग में ही हैं । (देखिए चित्रण ग० मं० १३) । तटों से द्वीपों का अन्तराल एवं द्वीपों का व्यास जितना लवण समुद्र में कहा था उतना हो कालोद मनुष्यों के नाम अपने अपने द्वीपों के नाम सदा ही है । में है। उन टोपों में रहने वाले
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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