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________________ त्रिलोकसार गापा। ९११-१२-१३ से बाहर की ओर उतने ही योजन दूर जाकर वायव्य दिशा में गोल आकार वाला गौतम नाम का द्वीप है ॥११॥ विशेषा:-क्षण समुद्र के अभ्यन्तर तट से बाहय की पोर वायव्य दिशा में १२००० योजन दूर जाकर १२००० योजन ऊँचा और १२००० योजन चौड़ा गोल आकार वाला पोतम नाम का द्वीप है। पहुवण्णणपासादा वणवेदीसहिय तेसु दीयेसु । तस्सामी पेलंधरणामा सगदीवणामा ते || ९११ ।। बहुवर्णनप्रासादाः वनवेदोसहितेषु तेषु द्वीपेषु । तत्स्वामिनो बेलन्धरनागाः स्वकद्वोपनामानरुते ।। ९११ ॥ बह। बनविकाभिः सहितेषु तेषु टोपेषु सर्वेषु बहुवर्णमोपेता प्रासावा: सन्ति । तदीपस्वामिनो ये बेलपरमागास्ते स्वकीयस्वकीयद्वीपमामानः ॥ ११ ॥ गामार्ग:-4 सब द्वीर बनी और वेदिकाओं से युक्त हैं, उनमें महान विभूति युक्त प्रासाद हैं, उन द्वीपों के स्वामी अपने अपने द्वीप सदृश नाम वाले वेलन्धर जाति के नागकुमार देव हैं ।। १११॥ मागहतिदेवदीवविदयं संखेनजोयणं गचा । तीरादो दक्षिणदो उचरभागेवि होदिति ॥ ९१२ ॥ मागपत्रिदेवढीपत्रितयं संख्यानयोजनं गत्वा। तीस दक्षियातः उत्तरभागेऽपि भवतीति ॥ ९१२ ।। मागह । भरतक्षेत्र दक्षिरगतस्तोरात संख्यातयोगमानि गरवा मागषवरतनुप्रभाताख्यामराणा प्रमाण देवानां तत्तन्नामद्वीपत्रममस्ति, ऐरावतोसम्भागेऽपि लया द्वीपत्रयमस्ति ॥ १२ ॥ पाथाय :-समुद्र के दक्षिण सट से संख्यात योजन आगे जाकर मागध आदि तीन देव हैं और इन्हीं नाम के पारी तीन द्वीप है। उत्तर भाग अर्थात् ऐरावत क्षेत्र में भी तीन द्वीप हैं ॥११॥ विशेषाय:-भरत क्षेत्र को गङ्गा सिन्धु नदियों के प्रवेशद्वार और एक जम्बूद्वीप का वाय इन तीनों दारों के सम्मुख संख्यात योजन आगे जाकर मागष, वरतनु मोर प्रभास नामक तीन देवों के इसी नाम वाले तीन द्वीप हैं। इसी प्रकार उत्तर भाग अर्थात् ऐरावत क्षेत्र में मा तीन द्वीप हैं। साम्प्रतं लवणकालोदकसमुद्रान्तस्थितान् षण्णवतिकुमानुष्येद्वीपानाह दिसिविदिसंतरगा हिमरजताचलसिहरिरजदपणिधिगया। लवणदुगे पल्लठिदी कुमणुसदीवा हु छण्णउदी ।। ९१३ ।।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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