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पापा। ९.t-et.
मरतिर्मग्लोकाधिकार पश्चिम दिग्गत पाताल नाम के पाताल की पूर्व दिशा में शङ्ख और पश्चिम दिशा में महाराज नाम के पर्वत है, जिन पर ऋम से उदक और उनकवास नाम के देव रहते हैं, तथा उत्तर दिगत : यूपकेशर नाम के पाताल की पूर्व दिशा में दक और पश्चिम दिशा में दकवास नाम के पवंस हैं, जिनके ऊपर कम से लोहित और लोहिताङ्क नाम के देव रहते हैं। ये सर्व व्यन्तय देव नाना प्रकार की विभूतियों से सहित हैं। सवं ही पर्वत श्वेत वर्ण और मधंघट सदृश आकार वाले हैं। जल से १००. योजन ऊपर है, तथा दोनों तटों से ४२००० योजन दूर जाकर स्थित है। लवणसमुद्राम्यात द्वीपान् तद्वपासादिकं च गाथाचतुष्टयेनाह
तहदो पर टेन्निसमेनियवाला विदिस अंतरगा । मडमोलस ते दीवा बट्टा पूरक्खचंदक्खा ।। ९०९ ॥ तडता गत्वा तामात्रव्यास हि विदिक्षु अन्तरका।।
अषोडश ते द्वीपा वृत्ताः सूर्यास्य चन्द्राख्या 100 सडदो। उभयताटातावमात्राणि योजनाति ४२००० गत्वा तावमात्रव्यासा ४२०००। विवियन्तरविक्षु च यथासंख्यं मन्नु षोडशसंख्या सूर्यास्यचन्द्रापास्ते डोपाः वृत्ताः स्युः ॥EDEI
लवण समुद्र के अम्पन्तर द्वीपों और उनके व्यासाविक को चार गाथाओं द्वारा कहते हैं :
गाया:-जितने योजन ध्यास वाले द्वीप हैं दोनों तटों से उतने ही योजन दूर जाकर विदिशा और अन्तर दिशाओं में सूर्य नामक माठ ओय चन्द्र नामक सोलह वृत्ताकार द्वीप हैं ॥1॥
विशेषार्थ:-अभ्यन्तर सट से बाहर की ओर और बाह्य तट से भीतर की ओर ज्यालीस ध्यालीस हजार योजन दूर जाकर विदिशाओं और अन्तरदिशाओं में ४२००० योजन ध्यास वाने द्वीप हैं। वहीं चारों विदिशाओं के दोनों पाश्र्वभागों में पाठ सूर्य नाम के द्वीप है तथा अन्तय दिशाओं के दोनों पापवं भागों में सोलह चन्द्र नाम के द्वीप है। ये सर्व द्वीप गोल आकार वाले हैं।
तडदो बारसहस्सं मंतूणिह तेत्तियुदयविस्थारो । गोदमदीयो चिट्ठदि वायव्य दिसम्हि बटुलभो ।।९१०॥ सटतो द्वादशसहस्र गस्वेह ताव दुदयविस्तारः ।
पौतमद्वीपा तिष्धति वायदिशि चतुलः ॥ ६१०॥ सराह लवणे प्रयतरसाद साबससहन्न १२००० योजनानि गरवा वाग्मानोडपः १२... तावमाविस्तारः १२०० वृत्ताकारोधायच्या निशि गौतमामो द्वीपस्तिति ॥ ६१. ॥
गाथा:-जितने योजन विस्तार और ऊँचाई वाला दीप है, लवरण समुद्र के मम्यन्त र तट