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पाषा:१३
नपतियंग्लोकाधिकार दिशाविदिशान्तरकाः हिमरजताचलशिखरिरजतणधियताः।
लवणद्विक पल्यस्थितयः कुमनुष्यतीपा हि षण्णवतिः ॥ ११ ॥ विसि | लवरण समुद्रस्य विक्ष चरवारो ४ विदिक्ष चत्वारो ४ प्रातरियो - हिमरमशिखरिरजतपर्वतानामुभयप्रान्सप्राणषिगतो प्रत्येकं वो को पति मिलिवानो ८ इति सर्वेऽपि मिलिरवा सतासमुदस्याम्पतरतटे पविशतिः २४ बाह्यतटेऽपि चतुविशतिः २४ मिलित्वाचवारिशत ४८ | एवं कालाकोभयतटेप्चस्वारिंशत् ४८ इति सर्वेऽपि मलित्वा घणवतिसंख्याप्रमिता: ९६ कुमनुष्यतोपाः पति। तत्रस्था मनुष्याः पश्यसिपत्तिका भवन्ति ॥ ३॥
___ अब लवण और कालोदक समुद्रों के अभ्यन्तर तटों पर स्थित अमानुषों के ९६ दीपों को कहते हैं :
गायर्य:-लवण एवं कालोदक समुद्र को दिशाबों, विदिशामों एवं अन्तर दिशाओं में तथा हिमवन कुलाचल, भरत क्षेत्र सम्बन्धी विजयाष, शिनरी कुलाचल और ऐरावत क्षेत्र सम्बन्धी विजमार्ष पर्वत के निकट ९६ कुमानुष्य द्वीप हैं जिनमें रहने वाले मनुष्य एक पत्य को आयु वाने होते हैं ।। ६१३ ॥
__विशेषा:-लवण समुद्र के अभ्यन्तर तट की विशाओं में चाय कुमानुष द्वीप हैं, विदिशाओं में चार मोर आठ अन्तर दिशाओं में आठ द्वीप है तथा हिमवन् कुलाचल, भरत सम्बन्धी विषयावं, शिखरी कुलाचल और ऐरावत सम्बन्धी विजयाचं इन चारों पर्वतों के दोनों अन्तिम भागों के निकट एक एक अर्थात् माठ द्वीप है। इस प्रकार छवण समुद्र के अभ्यन्तर तट के कुल द्वीपों की संख्या (४+४++-)=२४ है। इस के बाह्य तट पर भी २४ द्वीप हैं अतः लदरा समुद्र सम्बन्धी ४८ द्वीप हए। इसी प्रकार कालोदक समुद्र के दोनों तटों के ४८ हैं अतः कुल कुमानुष दोपों का प्रमाण (४८+ ४८ )=१६ है। यथा :
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