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पापा : ९०४ से ९०८ नरतियंग्लोकाधिकार
६९३ विशेषार्थ:-जम्बूद्वीप की अपेक्षा लवण समुद्र के बाप में, बेलन्धर जाति के नायकुमार देवों के ७२.०० विमान हैं। शिखर मैं ( १६००. ऊंची जलराशि के ऊपर) २८०० और अभ्यन्त य में + निमा। अथ तविमानानामवस्थान विशेष तपासं चाह
दुतडादो सत्सयं दुकोसमहियं च होइ सिहरादो। णयराणि हुगयणतले जोयणदसगुणसहस्सवासाणि ||९०५॥ द्वितटात सप्तशत द्विकोशापिकं च भवति शिखरात् ।
नमराणि हि गगनतले योजनदशगुणसहस्रन्यासानि ॥९०४॥ तुतडा । लवण समुस्योभयतदारसप्तशतयोजनानि ७०० तच्छिमारा विकोशाधिकामि सप्तशतयोजनानि ७.० को २ स्यबस्था गगनतले दशसहस्रयोजनम्याप्तानि १०००० मराणि सन्ति ।। ९.४॥
अब उन विमानों का अवस्थानविशेष और व्यास कहते हैं।
गापार्थ -लवरण समुद्र के दोनों । बाह्य, अभ्यन्तर ) तटों से सात सात सौ योजन और शिखर से दो कोस अधिक सात सौ योजन ऊपर जाकर अर्थात् जल से ऊपर मात्र प्राकार में दस दस हजार ( प्रत्येक ) योजन व्यास वाले नगर हैं । दिग्यतपातालपाश्वस्थपर्वतान् तस्मिन्निवासिदेवादिकं च पाथाचतुष्टयेताह--
वरवाहपहुदीणं पासदुगे पव्वदा हु एक्केरका । पुज्ये कोत्थुमसेलो इय विदियो कोत्युमासो दु ॥९.५॥ तहि तण्णामवाणा दक्खिणदो उदगउदगवासणगा । इहसिवसिवदेवसुरा संखमहासंखगिरिदु पन्छिमदो ॥९०६।। तत्युदयुदयासमरा दगदगवासद्दिजुगलमुसरदो । लोहिदलोहिदभंका सहि वाणा विविहवण्णणया ॥९.७॥ धवला सहस्सामुग्गय मुवणगा पद्धघडसमायारा | उभयतडादो गया नादालमहस्समत्थंति ।। ९.८॥ . वडवामुखप्रम नीनां पाश्वंद्वये पर्वा हि एककाः । पूर्वस्यो कोस्तुभशैलः यह द्वितीया कोस्तुभातस्तु ॥६०५५) तत्र तन्नामद्विवानो दक्षिणद्वये उदाउदकवासनगौ। बह शिवशिवदेव सुरो घरमहापाली गिरिद्वयौ पश्चिम बये 180411