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त्रिलोकसार
पापा:०३ इस २१५००० योजन बस्तर प्रमाण में से विदिशा सम्बन्धी पातालों का मुख व्यास १०.० पोजन घटा कर अवशेष रहे-[ ..-. :.; ..कोजी आधा करने पर (२१४००० ) १०७००० योजन दिशागत और विदिशागत पातालों के मुखों का अन्तर है।
इस १.४.० योजन अन्तर प्रमाण में से सौगुणा पाच का घन अर्थात् ५xxxk-१२५x १००-१२५०० योजन घटा देने पर (१०७... - १२५०.)=१४५०० योजन अवशेष पहे। इन्हें १२६ (दिशागत पाताल और विदिशागत पाताल के बीच में १२५ अन्तर दिगत पाताल हैं अतः १२७ पातालों के १२६ अन्तराल होते हैं) से भाजित करने पर दिशा विदिशा सम्बन्धी पातालों के बीच में जो पाताल हैं उनके मुस्खों के बीच का अन्तराल (१११° )=v५० योजन प्रमाण प्राप्त होता है। पथा:
असर दिग्गत पाल
-----७५०सी०-....
अन्तर दिसत
अनन्तरं लवणोदकपरिपालकानां भुजगाना विमानसंख्यां स्थानत्रयाश्रयणाह
बेलंधर भुजग विमाणाण सहस्साणि शहिरे सिहरे । अंते पावचरि अडवीसं बादालयं लवणे ।। ९०३ ।। बेलन्धरभुजगविमानानां सहस्राणि बास शिखरे।
अन्ते द्वासप्ततिा मष्टविशतिः वाचत्वारिंशत् लवणे ।।६०३॥ बेले । जम्मूढीपापेक्षया लवणसमुद्रस्य बाह्य जिबरे अम्पन्तरे यासंख्य वेलंपाभुमानt विमानानि द्वासप्ततिसहस्राणि ७२००० अष्टाविशतिसहस्राणि २८०..वावारिशसहस्राणि १२०.. स्युः ।। ६०३ ॥
प्रब लवणोदक समुद्र के प्रतिपालक नागकुमार देवों के विमानों को संख्या को तीन स्थानों के मामय से कहते हैं
__ गापाय :-लवण समुद्र के बाह्य में, शिखर में और अन्यन्तर में वेलन्धर जाति के नागकुमार देवों के विमानम मे बहत्तर हजार, अट्ठाईस हजार और भ्यालीस हजार है ॥ ६०३ ॥