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________________ गापा। ९०२ नरतिपंग्लोकाधिकार योरम्तरालक्षेत्र स्पात १७.०० । एतस्मिन् पुनः शतारिणतपश्च धनं १२५०० होनं करवा ४५०० एतस्मिन् परविशत्युत्तरशतेम १२६ मागीकृते दिग्विविगतपातालान्तरं पातालमुखान्तरं स्वाव ७५० ॥ ६.२॥ अब पातालों के अन्तरालों का निरूपण करते हैं : गायार्थ :-लवण समुद्र को मध्यम परिधि का चतुर्थ भाग ( 020 ) विशा सम्बन्धी एक पाताल के मुख के अन्त से दिशागत दूसरे पाताल के मुख के अन्त तक के क्षेत्र का प्रमाण होता है। इसमें से पातालों का मध्य व्यास घटा देने पर एक पाता पान के प्र. का अन्तर प्राप्त होता है । तथा इस मध्यम अन्तर के प्रमाण में से उसी पाताल का मुख ध्यास घटा देने पर मुख से मुख का अन्तर प्राप्त होता है. इस अन्तर के प्रयास में से विदित पातालों का मुख ध्यास घटाकर उसे आधा करने पर जो प्रमाण प्राप्त हो वह दिशा सम्बन्धो पातालों और विदिशा सम्बन्धी पाताओं के मुख का अन्तर प्राप्त होता है। इस अन्तर के प्रमाण में से सौगुणा पांच का धन अर्थात् बारह हजार पांच सो घटाकर अवशेष को एक सौ छन्धीस का भाग देने पर दिशा विदिशा सम्बन्धी पातालों के मुख से अन्तर दिगगत पातालों के मुख का अन्तर प्राप्त होता है । ९०२ ।। विशेषार्थ:-लवण समुद्र का मध्यम सूची ध्यास तीन लाख योजन है। इसकी स्थूल परिधि ६०.०० योजन की हुई. इसका चतुर्थ भाग अर्थात ( ५०००० )-२२५००० योजन एक दिशागत पाताल के मुख के अन्न से प्रारम्भ कर दिशागत द्वितीय पाताल के मुख के अन्त तक अन्तर है। इस मुखगत २२५०.. योजनों में से दिग्यत पातालों का मध्यम व्यास १००००० योजन घटा देने पर (२२५००० -१०००००)-१२५००० योजन अवशेष रहा । यही दिग्गत पातालों के मध्य का अन्तर है। उस दो लाख पच्चीस हजार में से दिशागत पातालों का मुख व्यास दश हजार योजन घटा देने पर ( २२५००० - १०००.)=२१९००० योजन पातालों के मुखों के बीच का अन्तर है। यथा: जन-दिसत 1. . दोशे दिमात . . . . २२५.यो. . . . . E : 15.." HE जलवायु .. .--- १२५०००dia -. -(.. अल-बायु वायु .. .. -२Reason - . - -
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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