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________________ ६६८ त्रिलोकसार गाथा । ६०१ है वहाँ मुख १०००० योजन और भूमि २००००० योजन है। भूमि में से मुख का प्रमाण घटा कर आधा करने पर ( २००००० १००००=१६००००÷२) = ६५००० योजन एक पार्श्व भाग में हानि का प्रमाण प्राप्त हुआ। जबकि १६००० योजन की ऊंचाई पर ९५००० योजनों की हानि होती है तो १ योजन को ऊँचाई पर कितनी हानि होगी । इस प्रकार त्रैराशिक करने पर (14888 ) = १ योजन हानि चय प्राप्त हुआ। जबकि १ योजन की ऊंचाई पर योजन की हानि होती है, तो चन्द्रमा की ८०० योजन की ऊंचाई पर कितनी हानि होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर ( को १६ से अपवर्तन करने पर प्राप्त हुआ। इनका परस्पर में गुणा करने पर ५१२५ योजन हुए। समुद्र सम्बन्धी चार क्षेत्र का प्रमाण ३३०६ योजन है । ५२२५ योजनों में से ३३० ६ योजन घटाने पर ५२२५ – ३३० ४०५ यो० हुए। इसमें से १ अ ग्रहण कर घटाने के लिए एक का मच्छेद करने पर दे योजन हुए, अतः अवशिष्ट रहे । अर्थात् ४८९४३३ योजन अवशिष्ट रहे । यही चन्द्रमा और समुद्र जल का तिथं अन्तर है। अर्थात् लवण समुद्र के तट से ३३०योजन तिर्यग् जाने पर चन्द्रमा की ऊंचाई ८८० योजन प्राप्त होती है और समुद्र तट से ५२२५ योजन तिर्यग जाने पर समुद्र जल को ८०० योजन की ऊंचाई प्राप्त होती है अत: ५२२५-३२०१६४८९४१३ योजन चन्द्रमा और समुद्र जल का नियंगन्तर प्राप्त हुआ । — २०१७८४१८ चन्द्र और समुद्र जल का ऊर्ध्व अन्तर- जबकि योजन जाने पर जल को ऊँचाई १ योजन प्राप्त होती है तो समुद्र तट से ३३०६ योजन आगे जाने पर जल की कितनी ऊंचाई प्राप्त होगी ? इस प्रकार राशिक करने पर १६४३२०६६ प्राप्त हुआ। इसमें ३३० चार क्षेत्र को समच्छेद कर रविविम्ब के प्रमाण में मिला देने पर ११ योजन प्राप्त हुए। इन्हें ९५ भागद्दार से और १६ अंश से गुणा करने पर प्राप्त हुए इसमें अपने भागहार का भाग देने पर १५३ योजन प्राप्त हुए । यही चन्द्र के नीचे समभूमि से जल को ऊँचाई है । अर्थात् समुद्र तटसे ३३०१६ योजन भीतर जाकर चन्द्रमा की अन्तिम गली अर्थात् चारक्षेत्र को समाप्ति होती है। वहीं चन्द्रमा भूमि से ८५० योजन ऊपर है और वहीं समुद्र का जल समभूमि से ५५६३१ योजन ऊंचा है। चन्द्रमा को ऊँचाई ८८० योजनों में से जल को ऊँचाई ५४३ योजन घटा देने पर (CNY) = योजन समुद्र जल और चन्द्रमा के बीच का ऊध्ये अन्तर प्राप्त हुआ । ८२४ 1991 $22 VVTC सूर्य से समुद्र जल का तिगन्तर :- जबकि समभूमि से एक योजन की ऊंचाई पर समुद्र तट से आगे योजन क्षेत्र प्राप्त होता है, तब ८०० योजन की ऊँचाई पर कितना क्षेत्र प्राप्त होगा ? इस प्रकार त्रैराशिक करने पर प्राप्त हुए। इन्हें १६ से अपवर्तित कर अवशेष ९५ और ५० का गुणा करने पर ४७५० योजन क्षेत्र प्राप्त हुआ। इनमें से समुद्र सम्बन्धी चार क्षेत्र ३३०६ घटा देने पर ४६) = ४४१६१६ योजन सूर्य और समुद्र जल का सिगम्बर है । (४५५० २०१७८ -
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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