SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 731
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरतियंग्डोकाधिकार १७ पाचवेताषयोजनोपयस्य १६.०० एतावद्ध नौ ६५. एकयोजनोपयस्य किमिति सम्पात्यापतिते एकयोजनोवयहानिः स्यात् । एक योजनोदयस्य एतावद्धानिमये कर एतावत: ८० किमिति सम्पात्य १५। ८५० षोडशभिस्तियंगपवर्य ५। ५५ गुणमित्या ५२२५ प्रब समुद्रपारक्षेत्र ३३० मपनीय ६५ मत्रैकं गृहीत्वा रविधिम्बेण समच्छेदं कृत्वा । प्रत्र बिम्बे अपनीते " पन्नाम्बुष्योस्तियंगन्तरं स्यात् । तटात एतावमतो एकयोगमोदये एताबगतो ३३० किमिति सम्पास्य चारक्षेत्र ३३० रविनिम्न समछेवीकृस्याग्योन्य मेलयिस्मा २१ एतबारस्य ६५ हारेण । १६ गुणविश्वा । भक्त लाभ ५५ शेष १३ चन्धपरिणधिजलधेः बलोदयः स्यात् । एसचन्द्रोगये ५० प्रपीते म२४ शेष धन्नार्णवोतिरं स्मात । साम्प्रत स्वेस्तिर्पगन्तराधिकमानीयते । एकयोजनोग्यस्य १ सटादेतावनतिम एतावत: ८०० किमिति सम्पास्य षोडयमिस्तियंगपवरयं । ५० गुणविश्वा ४७५. प्रत्र समुद्र बारे ३३० प्रपनीले ४४१सति सूर्यारम्वतिसकीनासरं स्यात् । चमायोतिरे ६२४ 0 प्रशोति ८० पोजने अपनीते ७४४ । सारर्णवोचन्तिरं स्यात् । अथ प्रसङ्गन लवससमुनसम्बन्धिसूर्यप्रतिषी अलोवयः साध्यते । रविनिम्बस्य व्यासं ३ विगुणीकृस्य तत्समच्छेगीकृते लवणम्यासे १२२१००० अपनयेत् । १११ सन्तिरालक्षेत्र स्यात् । मोरन्तरयोरेतावति क्षेत्रे 8990 एकान्तरस्य किमिति सम्पात्य द्वाभ्यामपवर्ष 199%१ भक्त ELELE भा १३ इवं लवरणसमुद्रोयमर्गयोरन्तरं स्यात् । प्रस्मिन्नषिले ४EEEE शे ३५वं लवणसमुद्रोपसूर्यवेदिकान्तरं स्यात् । एतवेव समच्छेगोकस्य वर्जिन मेलयित्वा 30४११०पश्चादेनाववायामे एकयोजनोवपश्येद एतावायामे 3. किमिति सम्पास्य हारस्य हारेण संगुण्य " " भक्त ८४२० शे सतीवं लवणसमुद्रीय प्रणियों जलोबमः स्यात् ॥६॥ अब जम्बूद्वीपस्य चन्द्र सूर्य से लबण समुद्र के बल का नियंग् अन्तर कहते हैं : गापा:-लवण समुद्र मुरजाकार है। इसकी हानि के प्रमाण को आषा कर (३५ ) चन्द्र, सूर्य की अपनी अपनी ऊंचाई के प्रमाण मे गुणा करने पर जो लब्ध प्रान हो उसमें से समुद्र सम्बन्धी चार क्षेत्र घटा दन पर लवए समुद्र के जल का चन्द्र सूर्य से तिर्यगन्तर का प्रमाण प्राप्त हो जाता है। ९.१॥ विशेषार्थ:-लवण समुद्र का जल मुरजाकार है तथा चन्द्रमा भूमि मे १८० योजन और सूर्य भूमि स १०० योजन की ऊंचाई पर स्थित है। लवण समुद्र की हानि के प्रमाण को आधा कर ११५००) चन्द्र सूर्य को अपनी अपनी ऊंचाई के प्रमाण से गुणा करने पर जो लब्ध प्राप्त हो, उसमें से समुद्र सम्बन्धी चार क्षेत्र का प्रमाण घटा देने पर जम्बूदीपस्य चन्द्र सूर्य का लवण समुद्र के जल से तियंग अन्तर प्राप्त होता है। इसी अर्थ का विवेचन करते हैं :- लवण समुद्र के जल में जहाँ १६००० योजन की वृद्धि होती
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy