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________________ त्रिलोकमार पाषा:०१ ११.०० लपणे लोवयः स्यात् तस्य षोडशसहनोदये मुस्खध्मालो दशसहस्र'१००० घोडशसहस्रोग्यस्य १६००० एतावद्धानो १.० पञ्चसहस्रोक्यस्य ५.०० किमिति सम्पास्यापार्य गुणमित्या महारेर जाला ६३ पान 18000 युज्यात ६९३७५ । इनमेकावशसहसो ११००० क्ये मुहपाठः स्यात् । व्यासस्तु द्विलक्षयोजनं स्यात् ।। ६० ।। इस प्रकार हानि वृद्धि युक्त लवण समुद्र का भूव्यास और मुख व्यास कहते हैं : पाया:- लवण समुद्र के मध्य में समुद्र का जल पूर्णिमा को सोलह हजार ऊंचा और अमावस्या को ग्यारह हजार ऊँचा होता है। सोलह हजार ऊंचाई वाले जल का भूम्यास दो लाख योजन और मुख व्यास यश हजार योजन प्रमाण है ॥ १० ॥ विशेषा -लवण समुद्र के मध्य में अमावस्या के दिन जल की ऊंचाई समभूमि मे ११.०. योजन रहती है। इसके बाद प्रतिदिन ३३३३ योजन की वृद्धि होती हुई पूर्णिमा को वह ऊंचाई १६००० योजन हो जाती है । पुनः प्रतिदिन ३३३३ योजन की हानि होती हुई ममावस्या को जल की ऊंचाई ११.०० योजन रह जाती है। जब जल १६००० योजन ऊंचा होता है तब उसका भू व्यास अर्थाद नीचे की चौड़ाई दो लाख योजन और मुख व्यास अर्थात् ऊपर को चौड़ाई १०००० योजन को रहती है। जबकि १६.०० योजन की ऊँचाई पर १०००० योजन की चौदाई का ह्रास होता है, तब ( १६००-११०..)=५.०० योजन की ऊंचाई पर कितना दास होगा ? इस प्रकार राशिक कर { '१५१०४१०" ) शून्यों का शून्यों से अपवर्तन एवं गुणन राशि का गुणा कर अपने भागहार का भाग देने से ६३५५ योजन प्राप्त हुए। इनमें मुख व्यास १...० योजन जोड़ देने से ( ५९३७५ + १०...)६९७५ योजन मुख व्यास का प्रमाग प्रास हमा। अर्थात् जब जल समभूमि मे १९... योजन ऊंचा होता है तब उसकी ऊपर की चौबाई ६६३४५ योजन सोच भूण्यास अर्थात् जमीन पर जल को पाई दो लास पोजन होती है। इदानी जम्बूद्वीपस्थ चन्द्रादित्ययोलंवगाज लम्य तिर्यगन्तरमाह-- पुरवायारो अलही हाणिदलं सोदयेण संगुणियं । विसमाचारमंचुहिजचंदरवि अंतरयं ।। ९०१ ॥ मुरजाकारः पलाषिः हानिदलं स्वोदयेन सगुण्य । विसमुद्रचारमम्बुधिजम्चन्द्रख्यन्तरं ॥ १.१ ॥ पुरषा। मुरणाकारो जलषिः हानिपलं मूमेः सकाशासमन्ता ८० वित्ययो २०० वत्सेधेन मंगुखियं तु विगतसमुद्रचारं यत सबम्युजम्बूद्वीपहचादरम्योरितगतरं स्मात् ॥ ममुमेवार्य विवरयति-सत्कय ? मुखं १००० भूमो २ ल. शोधमिरवा १९०००० पर्षोकरय ६५...
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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