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पापा : CLE
मरतिपग्लोकाधिकार अन्तरविगत पाताल कुण्डों का बाहुल्य विदिग्गत पाताल कुण्डों का दसवां भाग अर्थात् ५ योजन प्रमाण हैं। ये सभी कुण्ड गोलाकार और पत्रमयी हैं। तपातालोदरवतिनोजलानिलयोवतनक्रममाह
हेटुवरिमतियभागे णियदं वादं जलं तु ममम्हि । जलवादं जलवड्डी किण्हे सुस्के य वादस्स ।। ८९८ ॥ अघस्तनोपरिमविभागे नियतः वातो जलं तु मध्ये।
जलवान: जलवृद्धिः कृष्णे शुक्ले च वातस्य ।। ८९८ ॥ हेटठुन । तेषां पातालानामधस्तनतृतीयभागे विशः ३३३३३३ विदिशः ३३३३१ मतारिशः ३३३% वात एष नियतः, उपरिमतृतीपभागे प जलमेव नियतं । मध्यमसृतीयमागे तु मलयातमिमः । कृष्णपक्षे तन्मध्यमतृतीयभागस्थनलस्य वृद्धिः, शुमलपो पुनस्तत्र वासस्म शिः स्यात् neten
उन पातालों के अभ्यन्तरवर्ती जल और वायु के प्रवर्तन का क्रम कहते हैं
गापा:-उन पातालों के अपस्तन भागों में नियम से वायु है तथा उपरिम भाग में जल और मध्यम भाग में जल, वायु दोनों हैं । कण पक्ष में जल की ओर शुक्ल पक्ष में वायु की वृद्धि होती है ।। ८९८ ॥
विशेषाप:-इन पातालों के ऊँचाई की अपेक्षा तीन भाग करने पर दिग्गतपातालों का तृतीय भाग [ १०१००० -३३३३३१, विदिग्गत पातालों का (229)३३३१४ और अन्तरदिगत पातालों का तृतीय भाग ( ११०० )- ३.३३, योजन प्रमाण होता है। इन पातालों के अधस्तन तृतीय भाग में वायु, मध्यम तृतीय भाग में जलवायु मिश्र और उपरिम तृतीय भाव में मात्र जल पाया जाता है। कृष्ण पक्ष में मध्यमतृतीय भायसय जल की वृद्धि होती है और शुक्ल पक्ष में उसी मध्यमतृतीय भाषस्थ वायु की वृद्धि होती है। स्था
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