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चिलोकसाथ
Rथ दिग्गतपातालानां संज्ञादि
म्हैं।
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पाचा : १७
वामु कदंबगवायालं जवकेसरं वडा |
पुब्वा दिवज्जकुड्डा पणसय बादल दसम कमा || ८९७ ॥ वडवामुखं कदम्बक पाठालं यूपकेशरं वृत्तानि । पूर्वादिवज्रकुटानि पशतबाल्य दशमं क्रमात् ॥८७॥
aar सुखं कदम्बक पातालं यूपकेसर मिति पूर्वादिदिग्ातपातालनामानि तानि वृत्तानि वमयकुयानि, विग्गतपातालानां कुडाल्यं पशतयोजनानि ५०० एतद्दशमांशी ५० विदिग्गालपातालकुडवा हयं तद्दशमांश ५ अन्तरविग्गतपाताल कुख्यवाहस्यं स्यात् ॥ ८६७ ॥
अब दिग्गत पातालों के नाम आदि कहते हैं
गाथार्थ :- बढ़दामुख, कवम्बक, पाताल और यूपकेशर ये क्रमश: पूर्वादि दिशा सम्बन्धी पातालों के नाम हैं । सर्व पाताल गोल और वज्रमयी कुण्डों से संयुक्त हैं। दिशा सम्बन्धी पातालों के कुण्डों का बाहुल्य ( मोटाई ) पाँच सो धनुष है। इनसे विदिग्गत पातालों के कुण्डों का बाहुल्य दशव भाग तथा इनसे भी अन्दर विग्गत पातालों के कुण्डों का बाहुल्य १० में भाग प्रमाण है ।। ६६७ ॥
विशेषार्थ :- पूर्व दिशा में बढ़वामुख, दक्षिण में कदम्बक, पश्चिम में पावाल और उत्तर में यूपकेबाद नामके पाताल हैं। इन पातालों के कुण्डों का बाहुल्य ५०० योजन है तथा विदिशागत पातालों के कृयों का बाहुल्य ( मोटाई ) दिग्गत पाताल कुम्बों का दसवाँ भाग अर्थात् ५० योजन और