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________________ नरतियं ग्लोकाधिकार ६५१ आगे लवण समुद्र के अभ्यन्तरवर्ती पाठालों के नाम, उनका बवस्थान, संख्या एवं परिमाण पापा : ८६६ कहते हैं गाथा :-लवस्तु समुद्र की मध्यम परिधि की चार दिशाओं, चार विदिशाओं और बा अन्तरालों में क्रम से चार चार और १००० पाताल है। दिशा सम्बन्धी पातालों के उदय के मध्यभाग का व्यास एक लाख योजन, सम्पूर्ण पाताल का उदय ( ऊंचाई ) एक लाख मोजन, तल व्यास उदय का दश भाग और मुख व्यास भी उदय का दश भाग है। दिशा सम्बन्धी पातालों के व्यासादिक का दaat भाग विदिशा सम्बन्धी पातालों का अनुक्रम है मोद विदिशा सम्बन्धी पातालों के व्यासादिक का दश भाग अन्तराल सम्बन्धी पातालों का अनुक्रम है || ८६ ॥ विशेषार्थ :- लवर समुद्र को मध्यम परिधि को चाय दिशाओं में चाय पाताल, चार विदिशाओं में चार पाताल और आठ अन्तरालों में १००० पाताल ( गड्ड े ) हैं। दिशा सम्बन्धी पातालों का उदय (ऊंचाई) एका योजन ई के ठीक मध्य में पाताल का व्यास ( चोड़ाई ) १००००० योजन है । पाताल का तल पास कोर मुख व्यास ये दोनों व्यास ऊँचाई के दसवें भाग अर्थात् ( 1999.99 ) दश दश हजार योजन प्रमाण हैं । शंका- पातालों (गड्ढों ) की एक लाख योजन की गहराई किस प्रकार सम्भव है ? समाधान - रत्नप्रभा पृथ्वी एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी है जिसमें ५० हजार मोटे अब्बहुल भाग को छोड़ कर खरभाग और पङ्कभाग पर्यन्त इन पातालों की गहराई है। विदिशा सम्बन्धी पातालों का व्यासादिक दिग्गतपावालों का दशव भाग है। अर्थात् विदित पातालों की गहराई ( 190800 ) १०००० योजन, मध्यव्यास भी १०००० योजन है । तल व्यास एवं मुख व्यास (०) एक हजार एक हजार योजन के हैं । अन्तर दिग्गत पातालों का व्यासादिक विदिग्गत पातालों का दशव भाग है। अर्थात् अन्तरदिग्गत पातालों को गहराई और मध्य व्यास १००००० ) - एक इजाय, एक हजार योजन के हैं तथा तल व्यास और मुख व्यास ये दोनों ( 1989 लो सौ योजन प्रमाण को लिए हुए हैं । निम्नङ्कित चित्रण द्वारा स्पष्ट विवेचन ज्ञातव्य है --- ८६ [ कृपया चित्र अगले पृष्ठ पर देखिए ]
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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