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त्रिलोकसार
पाषा: १९ विशेषा:-जघन्य प्रासादों का ध्यास ५० धनुष, उदय ७५ धनुष और लम्बाई १०० धनुष है। इन्हीं के द्वारों की चौड़ाई ६ धनुष, ऊंचाई १२ धनुष और गाय ४ धनुष प्रमाण है। मध्यम प्रासादों का व्यास १०० धनुष, उदय १५० धनुष और लम्बाई २०० धनुष है। इन्हीं के द्वारों की चौड़ाई, केंचाई एवं गाध क्रम से १२, २४ और = धनुष प्रमाण है। इसी प्रकार उत्कृष्ट प्रासादों का व्यास, उदय और लम्बाई कम से १५०, २२५ और ३०० धनुष प्रमाण है, तथा दरवाजों की चौड़ाई ऊंचाई और पाय क्रम से १८ धनुष, ३६ धनुष और १२ धनुष प्रमाण है।
बावड़ियों, प्रासादों और दरवाजों का प्रमाणः
बावड़ियों का
प्रासादों का
दरवाजों का
कमांक
गाध
चौड़ाई | चौड़ाई | ऊँचाई | लम्बाई | गाघ । चौड़ाई | ऊंचाई
-
-
जघश्य
५.
घ.
4.10
४
मध्यम
| १५
२.
| १५० ६० | १.३० | १५० -
२०० + | १५०, २२५ " | ३००
उस्कृष्ट
| ३६०
इवानी प्रकृतप्राकारद्वारा संख्यातद्वयासादिकं चाह
विजयं च वैजयंत जयंत अपराजियं च पुन्बादी । दारचउकाणुदभो अडमोयणमद्धवित्थारा ।। ८९२ ।। विजयं च वैजयन्तं जयन्तमपराजिनं च पूर्वादि ।
द्वारचतुष्काणामुदयः अष्टयोजनानि अधविस्ताराः || विनयं । विजयं च वैजयन्तं जयन्तमपराजितमिति प्राकाराणां पूर्वाधि द्वाराणि । तेषा दारपतुकारणामुदयोपोजनानि विस्तारस्तव,योजनानि ॥ ८६२ ॥
अब प्रकृत प्राकारों के दरवाजों की संख्या और उनका व्यासादिक कहते हैं
गाथा:--विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नाम वाले क्रमश: पूर्वादि दिशाओं में एक एक द्वार हैं । इन चारों दरवाजों की ऊंचाई आठ योजन और चौड़ाई इसके अर्धप्रमाण है॥१२॥