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________________ ६७६ त्रिलोकसाथ 9191: 550-555-55% अर्थात् पृथ्वी के नीचे इनकी नींव दो कोश प्रमाण है जो वज्रमय मूलभाग ( नींव ) और वंड्यं से निर्मितत्यन्त रमणीक शिखरों से संयुक्त हैं। अथ तेषां प्राकाराणामुपरि स्थितवेदिकां निरूपयति — पद्मदेविकारित पायाराणं उवरिं पुह मज्के उमवेदिया हेमी | aster गाविस्थाया कमसो ॥। ८८७ ॥ प्राकाराणामुपरि पृथक मध्ये पद्मवेदिका हैमी । द्विकोशपञ्चशतधनुस्तुङ्ग विस्तारा क्रमशः | ८८७ ।। पायारा । तेषां प्राकाराणामुपरि पृथक् पृथक् मध्ये द्विकोशोत्तुङ्गा पञ्चशतधनुर्थ्यासा हैमी ८७॥ अब उनके ऊपर स्थित वेदिका का निरूपण करते हैं गाथार्थ::- उन प्राकारों के ऊपर मध्य में पृथक् पृथक् दो कोस ऊँची और पांच सौ धनुष चौड़ी स्वप्रिय पद्मवेदिका है । अदिहिः स्तवनादिकं गाथाचतुष्केण निवेदयति तिस्से तो पाहिं हेमसिलातलजुदं वर्ण रम्मं । बावी पासादोवि य चिचा अत्यंति तहिं वाणा ॥ ८८८ || तस्या अन्तर्बहिः हेमशिलातलमृतं वनं रम्यं । वाप्यः प्रासादा अपि च चित्रा असते तत्र वानाः ॥८८॥ लिसो । तस्था: पबेदिकाया अन्तर्य हिम शिलातलयुतं रम्यं धनमस्ति तत्र चित्राः वाप्यः सावाश्च सति । तत्र प्रासादेषु वानाध्यन्तरा प्रासते ॥ ८८ ॥ अब चार गाथाओं द्वारा उन वेदिकाओं के भीतर और बाहर स्थित वनादिकों का निरूपण करते हैं गायार्थ:- उन वेदिकाओं के बाह्याभ्यन्तर दोनों ओर स्वर्णमय शिला से संयुक्त रमणीक वन, नाना प्रकार की बावड़ियां और प्रासाद हैं। प्रासादों में व्यन्तर देव निवास करते हैं ।। ६८ ।। बरमज्झणाणं वावीणं चाव विसद बिश्थारा । पणा कमसो गाढा सगवादसमामी ॥८८९|| वरमध्यजघन्यानां वापीनां चापः द्विशतं विस्ताराः । पञ्चाशदून क्रमशो गाधः स्वकथ्या सदशमभागः ॥ ६८९ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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