________________
गाथा : ५-६
नरतियंग्लोकाधिकार
(७४.
एवं अधस्वयम्भूरमण द्वीप और सम्पूर्ण स्वयम्भूरमण समुद्र में दुषमा नामक पञ्चम काल सदृश वर्तना होती रहती है।
एवं जम्बूद्वीपवर्णनं परिसमाप्य लबणार्णववर्णनमुपक्रममाणस्तयोमध्यस्थितप्राकारस्वरूपनिरूपणव्याजेन शेषद्वीपसमुद्रान्तस्थितान् प्राकारान गाथा येन निरूपयति
चउगोउरसंजुचा भूमिसुद्दे वार चारि बह दया । सपलरयणप्पया ते बेकोसवगाढया भूमि ।। ८८५ ॥ बजमयमूलभागा घेलुरियकयाइरम्मसिहरजुदा । दीयोवहीणमंते पायारा होति सम्वत्थ ।।८८६ ।। : चतुर्गोपुर संयुक्ता भूमिमुवे द्वादश चत्वारः अष्टोदयाः। सकल रस्नात्मकाने द्विकोशावगाढ़ा भूमि ॥ ८ ॥ वनमयमूल भागा बड्यंकृतातिरम्यशिखरयुताः।
द्वीपोवधीनामन्ते प्राकारा भवन्ति सर्वत्र ।। ८८६ ॥ घर। चतुर्गोपुरसंयुक्ता मी सामानोरमभ्या मुले पोजमण्यासा: भयोवनीच्या सकलरत्नामकारते भूमि विकोशोषयमवगाम स्थिताः । ८८५ ॥
पमा पझामपमूल मागा: बडूर्यकृतातिरम्पशिखरयुताः प्राकारा: वेडिका इत्यर्षः जोपामामुनपीनामन्ते सर्वत्र भवन्ति । ५८६ ॥
____ अब जम्बूद्वीप के वर्णन की परिसमाप्ति कर लवणसमुद्र का वर्णन प्रारम्भ करते हुए भाचार्य सर्वप्रथम जम्बूद्वीप प्रौय लवण समुद्र के मध्य में स्थित कोट के स्वरूप निरूपण के बहाने ( मिष से ) सर्व द्वीप समुद्रों के अन्त में स्थित प्राकारों का स्वरूप दो गाथाओं द्वारा प्ररूपित करते हैं :
गाथा:- सम्पूर्ण दीप समुद्रों के अन्त में ( परिधि स्वरूप ) प्राकार होते हैं । वे प्राकार चार धार गोपुर द्वारों से संयुक्त होते हैं। उनकी भूमि ( नीचे ) बारह योजन और मुख ( ऊपर ) चास योजन चौड़ा तथा ऊंचाई आठ योजन प्रमाण होती है। भूमि पर उनका अवगाह ( नींव ) दो कोश प्रमाण है। वे सर्वकोट रत्नमय है । वे वजमय मूल भाग ( नींव ) तथा वैडूर्यरत्नों से निर्मित अत्यन्त रमणीक शिखर से संयुक्त हैं ।। ६५, ८८६ ।।
विशेषाध:-सम्पूर्ण द्वीप समुद्रों के अन्त में परिधिस्वरूप एक एक प्राकार है । जो चार चार गोपुर द्वारों से संयुक्त हैं। जो नीचे ( भूमि ) बारह योजन और ऊपर ( मुख चार योजन चौड़े तथा थाठ योजन ऊंचे है। धे सम्पूर्ण हो प्राकार रत्नमय हैं। दो कोश भूमि को अवगाह कर स्थित है।