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त्रिलोकसार
याथा: E८९
मह। महाबलोऽतिबलस्त्रिपृष्ठो हिपुश्चेति नव वासुदेवाः । इससरतिकात्रय कम्यतेपीकठो हरिकण्ठो नीलकण्ठोऽश्वकरठः सुक: शिस्निकण्ठोषवीवो हपनीबो मयूरप्रीवरति मम प्रतिवासुदेवाः ।।
अब चक्रवर्ती, अर्घ चक्रवर्ती और बलदेवों के नाम चार गाथामों द्वारा कहते हैं__गापा :-भरत, दीर्घदन्त, मुक्तदन्त, गूढदन्त, श्रीपेण, श्रीभूति, श्रीकान्त, पय, महापद्म, चित्रवाहन, विमलवाहन और अरिष्टमेन ये बारह चक्रवर्ती होंगे। तथा चन्द्र, महाचन्द्र, चन्द्रघर, हरिचन्द्र, सिहचन्द्र, वरपन्द्र, पूर्णचन्द्र, शुभचन्द्र और ६ श्रीचन्द्र ये ६ बलदेव होंगे तथा नन्दी, नन्दिमित्र, नम्दिषेण, नन्दिमून, अचः, मामल, अतिसार, भिष्ट और सिर न पत्र अर्थात् नारायण होगे और इनके ही प्रतिशत्रु श्रीकण्ठ, हरिकण्ड, नीलकण्ठ, अश्वकण्ठ, सुकण्ठ, शितिकण्ठ, अश्वग्रीव, हपग्रीव और मयूर नीव ये नव प्रतिनारायण होंगें ।। ८७७ से ८६० ॥
विशेषा-सर्व प्रथम चक्रवतियों के नाम कहते हैं-१ भरत, २ दीर्घदन्त, ३ मुक्तदन्त, ४ गूढदन्त, ५ श्रीषेण, ६ श्रीभूति, ७ श्रीकान्त, ८ पद्म, महापा. १० चित्रवाहन, ११ विमलवाहन और १२ अरिष्टसेन ये बारह चक्रवर्ती होंगे। १ चन्द्र, २ महानन्द्र, ३ चन्द्रधर, ४ हरिचन्द्र, ५ सिंहचन्द्र, ६ वरचन्द्र, . पूर्णचन्द्र, ८ शुभ चन्द्र और ९ श्रीचन्द्र ये ९ बलभद्र होंगे। १ नन्दी, २ नन्दिमित्र, ३ नन्दिरण, ४ नन्दित, ५. अचल, ६ महाबल," अतिबल, ८ त्रिपृष्ठ और विपृष्ठ ये तव नारायण तथा इनके प्रतिशत्रु १ श्रीकण्ठ, २ हरिकण्ठ, ३ नीलकण्ठ, ४ अक्कण्ठ, . सुकण्ठ, ६ शिक्षिकाठ, ७ अश्वग्रीव, 5 हयग्रीव और ६ मयूरग्रीव ये ९ प्रतिनारायण होंगे। इदानीमुक्तार्थानां निर्गमनमाह--
एसो सब्बो मेमो परूविदो विदियतदियकालेसु । पुन्वं व गहीदवो सेसो तुरियादिभोगमही || ८८१ ।। एषः सर्को भेदः प्ररूपितः द्वितीयतृतीय कालयोः ।
पूर्वमिव गृहीतव्यः शेषः तुर्यादिभोगमही ॥ ८८१ ।। एसो। एक सर्वोऽपि मेद उत्सपिरणीहितोयतृतीयकालयोः प्रपितः, शेषः चतुर्याविभोगमहीति पूर्वमिव महोतव्यः ।। १ ॥
कहे हए अर्थ का उपसंहार करते हैं
गावार्थ :-उपयुक्त सब भेद उत्सपिणी के दूसरे तोसरे काकों के प्ररूपित किए गए हैं। अवशेष चतुर्षादि कालों में भोगभूमि की रचना है, ऐसा पूर्वोक्त प्रकार से ग्रहण करना चाहिए। ८८२ ॥