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पाथा : ७२
गपतियंग्लोकाधिकार
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TER । उत्सपिरणोद्वितीयकाले सहस्रवर्षे प्रशिष्टे सति कुलकरा: भवन्ति । ते तु कनका कनकप्रमः कनकराबः कनकध्वजः कमलापुङ्गवस्तथा नलिनो मलिनप्रमो लिनराको मलिनमजो नलिनपुङ्गवः पपः पाप्रमः पराज: पप्रध्वजः पापुङ्गवः महापान इति योगश ममयः स्युः ।।७१॥
अब उत्सपिणी के द्वितीय आदि कालों में वर्तना का कप कहते हैं :
गापाय--उत्सपिणी के द्वितीय काल में एक हजार वर्ष अवशेष रहने पर कनक, कनकप्रभ, कनकराज, कनकध्वज, कनकपुङ्गव तथा नलिन, नलिनप्रभ, नलिनराज, नलिनध्वज, नलिनपुङ्गव, पद्म पद्मप्रभ, पद्मराज, पद्मध्वज, पद्मगुङ्गा और महापद्म ये सोलह कुलकर होंगे ॥ ८७१ ।
विशेषा-उत्सपिरणो काल के दूसरे दुःपमा नामक काल में जब एक हजार वर्ष अवशेष रहेंगे तब १ कनक, २ कनकप्रभ, ३ कनकराज, ४ कनकध्वज, कनकपुङ्गव, नलिन, नलिनप्रभ,
नलिनराज, ६ मलिनचज, १० नलिनपुङ्गव, ११ पद्म, १२ पाप्रम, १३ पद्मराज, १४ पध्वज, १५ पद्मपुङ्गव और १६ मह पता थे सोलह गुमगार सोरी । मोट-तितोयपनाति में १४ कुलकरों का कथन है, पद्म व महा पद्य इन दो कुलकरों का नाम नहीं है। अथ हैवां कृत्यं तृतीयकालस्थत्रिषष्टिवालाकापुरुषांश्च माथाचतुष्टयेनाह
तस्सोलप्तमणुहि कुलायाराणलपक्कपहदिया होति । तेवढिणरा तदिए सेणियचर पढ़मतित्थयरो ।। ८७२ ।। तत्षोडशमनुभिः कुलाचारानलपश्वप्रभृतयो भवन्ति ।
त्रिषष्टिन रास्तृतीये धेणिकचर। प्रथमतीर्थकरः । ८७२ ॥ सस्सोलस । तो षोडशमनुभिः कुलाचारानलपपत्रप्रभृतयो भवन्ति । तृतीये काले पुनस्त्रिातशलाका पुरुषा भवन्ति । तत्र रिणकचरः प्रयमतीकरः स्यात् ॥ ९७२ ॥
अब उन कुलकरों के कार्य और तृतीय कालस्थ वेसठ शलाका के पुरुषों को पार गायाओं द्वारा कहते हैं :
नापार्थ :-उन सोलह कुलकरों के द्वारा कुलानुरूप आचरण और अग्नि आदि से पाचन आदि कला सिखाई जाती है । इसके बाद तृतीय काल में प्रेसठ शलाका के पुरुष होंगे जिनमें श्रेणिक राजा का जीव प्रथम तीर्थकर होगा ॥ ५७२ ॥
विशेषा:-धन सोलह कुलकरों के द्वारा क्षत्रिय आदि कुलों के अनुरूप आचरण धौर अग्नि द्वारा पाचन मादि का विधान सिखाया जाएगा। इसके बाप दुषमा सुषमा नामका तृतीय काल प्रारम्भ होगा जिसमें राजा श्रेणिक का जीव प्रथम तीर्थकर होगा।