________________
बाथा : ८६६-६६७-६८
नरतिग्छोकाधिकार छद्रुमचरिमे होति मरुदादी सत्सत दिवसबही । मदिसौदखारविसपरुसम्मीरजधूमवरिसामो ।। ८६६ ।। षष्ठचरम भवन्ति भरुदादयः सप्तसत दिवसावधि ।
अतिशीतक्षारविषपरुषाग्निरनोधूमवर्षाः।। ८६६ ॥ छटुम । षटकालघरमे मश्चादयः सप्त सप्त विवसावधि भवन्ति । ते 22 मतिचीतमारविषपरुषाग्निरखोघूमवृद्धयः ।। ८६६ ॥
___ गापा :-छठे काल के अन्त में क्रमशः पवन, मतिशोत, क्षाररस, विष, कठोर अग्नि, धूल और धुआ-इन सातों को सात सात दिन पर्यंत अर्थात् ४९ दिनों तक वर्षा होती है।
तेहिंतो सेसजणा पसंति विसग्गिवरिसदङमही । इगिजोयणमेसमधो चुण्णीकिजादि कालबमा ।। ८६७ ॥ तेभ्यः शेषजनाः नश्यन्ति विषाग्निवर्षादग्यमही ।
एकयोजनमात्रमधः चक्रियते हि कालवशात् ।। ८६७ ॥ तेहिं । तेभ्यो वर्षेम्पोऽयशेवनमा: नश्यन्ति विषाग्निवर्षग्यमही एकयोजनमात्रमयः कालवशाल चूर्णोभवति ॥ ६७ ॥
नाथार्य :- अवशेष रहे मनुष्य भी उन वर्षाओं से नष्ट हो जाते हैं । काल के वश से विष एवं अग्नि को वर्षा से दग्ध हुई पृथ्वी एक योजन नीचे तक चूर्ण ( चूर चूर ) हो जाती है ॥ ८६७ ॥ इदानीमुरसपिणीप्रवेशकर्म गाथात्रयेणाह--
उस्सपिणीयपढमे पुक्खरखीरघदमिदरसा मेघा । सचाहं बरसति य णग्गा मचादि माहारा ॥ ८६८ ।। उत्सपिणीप्रथमे पुष्करक्षीरतामृतसान मेधाः ।
सप्ताह वर्षन्ति च नग्ना मृताद्याहारा ८६८ ।। उस्स । उत्सपिणीप्रथमकाले मेघाः उबकक्षीरघतामृतरसान सप्त सप्ताहं वर्षन्ति । तत्कालत्या जीवा नाना मृत्तिकाद्याहारा: ॥६८।।
अब उत्सर्पिणी काल के प्रवेश का कम तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं--
गावार्थ :--उत्सपिणी के प्रथमकाल में मेव कमशः जल, दूध, घी, अमृत और रस की वर्षा सात सात दिन तक करते हैं । इस काल में स्थित जोत्र नग्न रहने वाले और मृत्तिका (मिट्टी का) आहार करने वाले होंगे ॥ ६८ ।।