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पाया : १९
लोकसामान्याधिकार
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संख्या गोल सरसों को प्राप्त हुई। यही गोल सरसों प्रथम अनवस्था कुण्ड में भरी जाती हैं। इसकी सिद्धि
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निम्न प्रकार होती है : उपरिम
अों में से एक का गुणन खण्ड करने पर २४२४२ प्राप्त होता है । ५०० का गुणकार तीनबार है, अतः प्रत्येक ५०० को २ से गुणा करने पर तीन स्थान पर १००० गुणकार प्राप्त होता है। प्रत्येक १००० में तीन तीन शून्य होते हैं. इसलिये तीन स्थानों पर एक एक हजार के ९ शून्य + एक हजार गहराई के ३ शुन्य तीन स्थानों पर स्थित ७६८००० के ९ शून्य + तीन लाख के ५ शून्य और + एक लाख के ५ शून्य इन सर्द शून्यों को मिलाने पर (+३+९+५+५ ) = ३१ शून्य प्राप्त हुए। इन्हें १६ × ३ × ७६८ × ७६८७६६६६६६६ संख्या के आगे रखना चाहिये ।
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उपरि पाँच आठ (८८८८८) के अों में से एक के अक का गुणनखण्ड करने पर २x २२ प्राप्त होते हैं। इन तीन दो ( २ २ २ ) के अकों से उन्हीं उपरिम तीन आठ (८८) के अंकों को करने से ५२५४२ = १६ १६ १६ प्राप्त हुये। इन तीन १६ के अंकों का और उपरिम एक १६ के अंक का परस्पर गुग्गा करने ( १६ × १६ × १६×१६ = ६५५३६ प्राप्त होते हैं । प्रत्येक ७६० के २५६४३ गुणन होते हैं । अर्थात् ७६६ = २५६३, ७६० - २५६४३, ७६५ = २५६ x ३ : =२५६ X २५६२५६ ४ ३ ४ ३ ३ – ६५५३६४२५६४३४६ गुणनखण्ड हुए । प्रथम प्राप्त हुए ६५५३६ को इस ६५५३६ में गुणित करने पर बादाल ( ४२ = ) प्राप्त होता है। हर में
दो
९ और अंग में ४ वार तीन ( ३, ३, ३, ३ ) हैं, अतः हर के ओर अंश के चारों ३, ३ के अंकों ( ३×३×३.४३_) का छेद करने से श्रंश में बार ३, ३ अर्थात् ९ प्राप्त होते हैं। हर के ४ से ऊपर अवशिष्ट बचे ८ का छेद करने से अश में (६) = २ का अंक प्राप्त होता है। उपर्युक्त समस्त प्रक्रिया से गोल सरसों का (४२ ( बादाल ) २५६ ४ ६ २ अर्थात् ४२ = २५६४१८ और ३१ शून्य) प्रमाण प्राप्त हो जाता है ।
अथ नवभाजिता वट्टमित्यस्य वासनारूपनिष्पन्न क्षेत्रफलमुच्चारयति - वासवणं दलियं णत्रगुणियं गोलपस्स घणगणियं । सब्वेसिपि घणाणं फलचिभागणिया सूई ||१९||
व्यासार्द्धघनः दलितः नवगुणितः गोलकस्य पनगतिम् । सर्वेषामपि घनानां फलविभागात्मिका सूची ॥ १९ ॥
वामद | व्यासार्धधनो ३४३४३ बलितः ३ x ३ x ३ + २ नवगुणित ३३ ३ ४ ३ गोलकस्य घन गरि सर्वेषां बनाना फलत्रिभागात्मकं सूचोकलं भवति । एषसोडसभाजिया वट्टमित्यस्य वासना नियते । एकपासकासगोलकमपकृत्यार्द्धमपहाय प्रवशिष्टाय पुनरपि सण्त्रयं कृत्या सत्राप्येकखण्डं गृहीत्वा तवप्यूर्ध्वानमविश्वा चतुरस्र यया तथा संस्थाप्य तत्र गोलकस्य' बहु
१ इतिवृत्तक्षेत्रस्य ( ब० प० ) ।
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