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________________ त्रिलोकसार गाथा : १८ द्वीप, समुद्र, कुलाचल, वेदी, नदी, कुण्ड या सरोवर, जगती और भरतादिक क्षेत्रों का माप अर्थात् प्रमाण इस प्रमाणांगुल से ही होता है । २४ प्रात्मगुल जिस जिस काल में भरतंरावत क्षेत्रों में जो जो मनुष्य हुआ करते हैं, उस उस काल में उन्हीं मनुष्यों के अंगुल का नाम आत्मांगुल है । झारो, कलश, दर्पण, वेणु, भेरी, युग, शय्या, शकट, हल, मूसल, शक्ति, तोमर, सिंहासन, वाण, नालि, अक्ष, चामर, दुदृद्धि, पीठ, छत्र मनुष्यों के निवास स्थान व नगर और उद्यानादिकां का माप आत्मगुलों से होता है । गाथा से सम्बन्धित विशेषार्थ : ल ल उत्सेधांगुल के द्वारा ही व्यवहार योजन का माप उत्पन्न होता है। उत्सेधांगुल से मांगुल पांच सौ गुणा होता है, अतः प्रमाणांगुल में ५०० का गुणा करने से उत्सेधांगुलों का प्रमाण आता है । जैसे :- प्रथम अनवस्था कुण्ड का घनफल ३० x १ x१००० धन योजन प्रमाण है। इसको ५०० का गुणा करने से घनफल ३० x १ x१००० ४५०० ५०० हैं। इन व्यवहार योजनों के अंगुल, यव और सरसों बनाने पर जैसे :- एक योजन के चार कोश, एक कोश के २००० धनुष, एक धनुष के चार हाथ और एक हाथ के २४ अंगुल होते हैं, इन सबका परस्पर में गुणा करने पर एक योजन के सात लाख अहमठ हजार अंगुल होते हैं. इसलिये इल x १ x १००० x ५०० व्यवहार धन योजनों में ७६८०००' का गुणा करने से ३x १ x१००० x ५०० ४७६८००० प्रमाण व्यवहार घनांगुल प्राप्त होते हैं । ' घनराशि का गुणाकार व भागद्दार घनरूप ही होता है" इस सिद्धान्तानुसार यहां पर सर्व गुणकार घनरूप हो लिये गये हैं । ५०० घन व्यवहार योजन प्राप्त होते निम्नलिखित प्रमाण प्राप्त होता है । एक अंगुल के यत्र और एक पत्र के ८ चौकोर सरसों होते हैं, अन: उपयुक्त व्यवहार घनांगुलों के प्रमाण में ८' x ८' का गुखा कर देने से - ३ल x १ x १००० x ५००' x ७६८०००' x ८' x अनवस्था कुण्ड के चौकोर सरसों का प्रमाण प्राप्त होता है। इन समस्त सरसों के प्रमाण में का भाग देने से गोल सरसों हो जाते हैं। कारण कि चौकोर वस्तु के घनफल में दो का भाग देने से गोल वस्तु का प्रमाण प्राप्त होता है। भागहार का हार गुणाकार हो जाता है इस नियम के अनुसार यहाँ १६ श्री गुणकार हो जायेंगे । ३००००० X १००००० X १००० ४५००X००५००७६८०००X ७६८००० X ७६८०००X XXX XX६४१६ ९०४ अथवा - बादाल (४२) को २५६ और १८ से गुणा करके ३१ शून्य रखने पर गोल सरसों का प्रमाण प्राप्त होता है । जैसे-- ४२९४९६७२६ ( बादाल ) x २५६ x १ x १००००००bandassoonerecccccc०००ce इनका परस्पर गुणा करने से १९७९१२०९२९६६६८००००००DEODOCDCC00000०००० यह ४५ अङ्क प्रमाण
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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