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गाथा : १८
लोकसामान्याधिकार स्यूल क्षेत्रफल स्वरूप प्रभाग योजनों के व्यवहार योजनावि बनाने लिये कहते हैं :___गाथार्ष:- स्थल क्षेत्रफल के व्यवहार योजन और व्यवहार योजन के सरसों बनाना चाहिये । तथा चौकोर सरसों में पर का भाग देकर गोल सरसों का प्रमाण निकलना चाहिये ॥ १८ ॥
विशेषार्थ :-तारतम्य विना स्थूल रूप से निकाले हुए क्षेत्रफल को स्थल क्षेत्रफल कहते हैं । यहाँ स्थूल क्षेत्रफल में ३ल ल ४१.०० प्रमाण योजन हैं, एक प्रमाण योजन के ५०० व्यवहार योजन होते हैं तो ल ल ४१००० प्रमाण योजनों के कितने व्यवहार योजन होंगे, इस प्रकार राशिक कर ध्यवहार योजन निकालना।
विशेष ज्ञातव्य :-जो' द्रश्य, आदि मध्य एवं अन्त से रहित हो, एक प्रदेशी हो, इन्द्रियों द्वारा अग्राह्य एवं विभाग रहित हो उसे परमाणु कहते हैं। इस प्रकार के अनन्तानन्त परमाणु-द्रव्यों से एक अवमन्नासन्न मन्त्प न्न होता है।
८ अबसन्नासन्नों का एक सन्नासन्न नाम का स्कन्ध होता है। ८ सन्नासन्नों ५५ युटिरेणु " " । ५ त्रुटिरेणुओं " . सरेण .
. । ८ सरेणुओं , रथरेणु . . . । ८ रथरमुओं .. उत्तम भोग भूमि का चालान नामक स्कन्ध होता है। ५ उत्तम भोग भू० के दालानों का एक मध्यम भोग भूमि का वालाय नाम स्कन्ध होता है। मध्यम . . . . . " जघन्य " "
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! ८ जयन्प "," . .. कर्म " " . " . ..। ८ कर्म , v » » » » लोक नामक स्कन्ध होता है। ८ लोकों का एक जू नामक स्कन्ध होता है।
८ जो "
मूल H " " . अंगुल के मेद एवं लक्षण :
अंगुल तीन प्रकार के है--उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल और आत्मांगुल ।
उत्सर्षागुल -ऊपर जो ८ जौ का एक अंगुल बताया है वही उत्सेधांगुल व्यवहारांगुल या मूच्यंगुल कहलाता है । इस उत्सेषांगुल से देव, मनुष्य, तियन एवं नारकियों के पारीर की ऊंचाई का प्रमाण और चार प्रकार के देवों के निवास स्थान व नगरादि का प्रमाण जाना जाता है।
प्रमाणागल :-पांच सी उत्सधांगुलों का एक प्रमाणांगुल होता है । यह प्रमाणांगुल अवसर्पिणी काल के ( प्रथम ) भरत चक्रवर्ती का एक अंगुल है।
१ ति.प. भाग गापा ९८ से ११३ तक।