________________
त्रिलोकसार
पाथा : ११ मध्यवेो विवक्षितस्थाने वेधडावेऽपि पावर्षेषु कमहानिसड्रावासमचतुरस्रकरणा होनापाने एतावत
रणं निक्षिप्य समस्थले पति तवपि पुमस्तियग्मध्यं छिस्था उपरि संस्थाप्य समावेन ऋणमपनीय "भुजकोटी" इत्यादिना खातफलमानीय एकखडस्पतावति .xx. षण्णा लण्डा कि फलमिति सम्पास्यापवय xxxगणिते !xx३ गोलकस्य धनगुणितमेवं नव योगशमाजितपस्य वासना जाता ! नियतुर्भलामोशाय नं "मुस्मुमि मोग" इत्यारिला भुबकोही" इत्यादिना "वासो तिगुण" इत्याविना यपाकममानीय त्रिभिभ तसबीफस भवति ॥१६॥
नब के सोलहवें भाग का भाग देने पर गोल वस्तु होती है, इसके वासना रूप उत्पन्न हये क्षेत्रफल ( खातफल ) को कहते हैं :
गाया :-व्यास के अर्ध भाग का घन करना चाहिये । उस धन का पुनः अर्ष भाग कर ९ का गुणा कर देना चाहिये । जो लब्ध प्राप्त हो वही गोलवस्तु का घनफरल है ! समस्त धनरूप क्षेत्रफल के तीसरे भाग प्रमाण सूचीफल अर्थात् शिखाफल होना है ।।१६।।
विशेषाप: गेंद आकार व्यास १ है। ध्यास का अधं भाग और इस अर्धव्यास का धन Ex.x३ है । अचं व्यास के धन का आधा xsxsx है। इस धन को ९ से गुणा करने पर
घनात्मक सर्व गोल वस्तु का घनफल होता है। और क्षेत्रफल का तीसरा भाग सूची का क्षेत्रफल होता है।
___गेंद सदृश घनात्मक गोल वस्तु का धनफल ( मम चतुरस्त्र धनात्मक के घनफल का) होता है, इसकी वासना का निरूपण किया जाता है :
एक व्यास और एक खान ( गहराई ) वाले गेंद जैसी गोल बस्तु ।
(व्यास १) को आधा करके उसके एक अर्धभाग को छोड़ कर अवशिष्ट दूसरे अर्घ भाग ..
.का परिम भाग जो कि पूर्ण वृत्त अर्थात् गोल - ...-...- है उसे ग्रहण करना चाहिये । इस