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________________ गाथा | ८६२-८१३ नरखिर्यग्लोकाधिकार ६ ६५. विशेषार्थ :- इस प्रकार इस पचम काल में प्रत्येक एक हजार वर्ष बाद एक कल्कि राजा होगा तथा बीस कल्कि राजाओं के हो जाने के बाद सन्मार्ग का मभ्थन करने वाला जलमन्थन नाम का अन्तिम कल्कि होगा। उसी काल में इन्द्रराज आचार्य के शिष्य वीराङ्गद नाम के अन्तिम मुनि, सो नामको लायिका, अग्गिल नामक उत्कृष्ट श्रावक ओर पंगुसेना नामकी धाविका छोपी । जब म काल के ३ वर्षमा अवशेष रहेंगे तब वह जल मन्थन नामक कल्कि राजा पूर्वोक्त प्रकाय मुनिराज के पाणिपुर में जाए हुए प्रथम ग्रास को शुल्क स्वरूप से ग्रहण करेपा, तब वे चारों यम सल्लेखना धारण कर लेंगे और सल्लेखना धारण करने के तीन दिन बाद ही कार्तिक वदी अमावस्या को पूर्वाकाल एवं स्वाति नक्षत्र में मरण को प्राप्त हो सोषमं स्वगं में मुनिराज वो एक सायर की आयु लेकर और अवशेष तीन साधिक एक पल्य की आयु लेकर उत्पन्न होंगे। उसी दिन के आदि में अर्थात् प्रातःकाल धर्म का, मध्याह्न में राजा का और सन्ध्याकाल में प्रग्नि का नाश हो जाएगा । इसके बाद मनुष्य नग्न रहेंगे और मत्स्यादि का आहार ( भक्षण ) करेंगे । अथ धर्मादीनां विनाशकारणमाह- पोग्गलमहरुकखादो जलणे धम्मे सिएण ददे । असुरवरणा परिंदे सयलो लोभो हवे अंघो || ८६२ || पुद्गलातिरौक्ष्पात् कालने घर्मे निराश्रयेण हते । सुरपतिता नरेन्द्र सकलो लोको भवेत् अन्धः ||८६२ ।। पोल | पुगलानामतिरौक्ष्यात ज्वलने नष्टे निराधये धर्म ते असुरपतिना नरेन्द्र व हते सति पश्चात् सकलो लोकोऽन्धो भवेत् ।। ६६२ ॥ ana र्मादिक के नाश का कारण कहते हैं गावार्थ :-- पुद्गल द्रव्य में अत्यन्त रूक्षता आ जाने से अग्नि का नाश, समीचीन धर्म के आश्रयभूत मुनिराज का अभाव हो जाने से धर्म का नाश तथा असुरेन्द्र द्वारा राजा का नाश हो जाने से सम्पूर्ण लोक अदा हो जाएगा अर्थात् मार्गदर्शक कोई नहीं रहेगा ।। ६२ ।। अथ तस्यजीवानां गत्यन्तरगमनागमनस्वरूप माइ एत्थ मुदा गिरयदुगं णिरयतिरक्खादु जणणमेत्थ हवे । थोबलदार मेहा भ्रू णिस्सारा जरा तिच्वा ॥ ८६३ ।। अत्र मृदा निश्यद्वय नरकतिर्यग्भ्यां जनतमत्र भवेत् । स्तोक जलदायिनो मेघा भूः निस्सारा नास्तीत्राः ॥ ८६३ ॥ ए । अत्र मृता नरकद्वयं गच्छन्ति माम्यत्र, नरकाग्गिश्यागतानामेवात्र जननं मवेत् नान्येषा । अत्र मेघाः स्तोकजलवामिमो भूः निःसारा नशस्तीचा: ८६३ ॥ ८४
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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