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गाथा: E५० से ५४
नरतियंग्लोकाधिकार
स्वर्ण सदा वर्ण वाने थे। वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पाश्वनाथ और महावीर ये पांच तो कर कुमार श्रमण अर्थात् बालब्रह्मचारी हुए हैं । अवशेष १९ तीर्थंकरों का विवाह हुआ था। महावीर नापवंश में, पाश्वनाय उग्रवंश में, मुनिसुव्रत और नेमिनाथ हरिवंश में धर्म, कुन्थु और अरनाथ कुरुवंश में तथा अवशेष सत्रह तीर्थंकर इक्ष्वाकुवंश में सत्पन्न हुए थे। इंसानी शककल्किनोत्पत्तिमाह
पणछस्सयवस्सं पणमास जुदं गमिय वीरणिध्वुझ्दो । सगराजो तो कक्की चदुणवतियमाहियसममासं ।। ८५.॥ पत्रपटक्षतवर्ष पश्चमासयुतं गत्वा वीरनिवृतेः।
पाकराजो ततः कल्की चतुणंवत्रिकमधिकसममासं ॥८५०॥ पण । पीवीरनाथमिव ते सकाशात पश्वीसरबट्छतवर्धारित ६०५ पञ्च ५ मासयुतानि गत्वा पश्चात विमाशकराजो जायते । तत नपरि चतुर्णवस्युत्तरत्रिशव ३६४ वर्षाणि सप्तमातापिकानि त्या पश्चात कल्की जायसे ।। ८५.॥
अब शक और करिक की उत्पत्ति कहते हैं
गावार्थ :-श्री वीर प्रभु मोक्ष जाने के छह सौ पाँच वर्ष पांच माह बीत जाने पर शक राजा उत्पन्न हुआ था और इसके तीन सौ चौरानवें वर्ष सात माह बीत जाने पर करिक को उत्पत्ति हुई थी ।। ८५० ।।
विशेषाई।-श्री वर्धमान स्वामी के मोक्ष जाने के ६०५ वर्ष ५ माह बाद विक्रमनामका शक राजा और इसके ३६४ वर्ष ७ माह बाद कलिक उत्पन्न हुआ अर्थात् वीर जिनेश के मोक्ष जाने के { ६०५,५ + ३९४,७) १००० वर्ष बाद कल्कि की उत्पत्ति हुई। इदानीं करिकनः कृत्यं गाथाषट्केनाह
सो उम्मगगाहिमहो चउम्मूहो सदरिबासपरमाऊ । चालीस रज्जओ जिदभृमी पुरुका समंतिगणं ।।८५१|| अम्हाणं के अरसा जिग्गंथा अस्थि केरिसायारा । णिद्धणवत्था मिक्खाभोजी जहसत्यमिदिवयणे ।।८५२।। तप्पाणिउडे णिवडिद पढमं पिंडं तु सुक्कमिदिगेज्म । इदि णियमे सचिवकरे चचाहारा गया मुणिणो || ८५३ ।। तं सोदुमक्खमो तं णिहणदि बजाउहेण असुरवई । सो भुजदि रयणपट्टे दुक्खग्माहेकजलरासिं ।। ८५४ ।।