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________________ ६६० त्रिलोकंसार अथ तीर्थकदशरीरवर्णादिकं तदशं व गाथात्रयेाह गाथा : ८४७-४८-६४६ पप्पहज्जारचा घवला हू चंद्रपसुविधी | नीला सुपासपासा सोमीमुनिसुव्वया किडा ।। ८४७ ॥ सेसा सोलस हेमा वज्जो मलिमिवासचिणा । बी कुमारसवणा महवीरो पाइकुलतिलओ ।। ८४८ || पासो दु उसो इरिवंसो सुन्दओ बि शमीसो । धम्मजिणो कुंभु भरा कुरुजा इक्खाउया सेसा || ८४९ ॥ पद्मप्रभवासुपूज्यो रक्तौ घवली हि चन्द्रप्रभसुविधी | नीली सुपादपाश्व नेमिमुनिसुव्रती कृष्णो ॥ ८४७ ॥ शेषाः षोडश हेमा वासुपूज्यो महिनेमिपादवं जिना: । वीरः कुमारमणा महावीरो नायकुलतिलकः ॥ ८४८ ॥ पारवस्तु उग्रवंश: हरिवंश: सुब्रतोऽपि नेमीशः । धर्मजिनः कुन्थुः अरः कुरुजा: इक्ष्वाकवः शेषाः ॥ ८४६ ॥ पवम । पद्मप्रभवासुपूज्यो रक्तवर्णी बद्रप्रभपुष्पदन्तो धवलवण सुबाइयाश्वंजिनौ नीलव विमुनिसुव्रत ८४७ ॥ सेसा । शेषाः षोडशीर्षक हेमबर: वासुपूज्यो मल्लिनेंमिपार्श्वविमो वीरचिन इति पञ्च कुमारथमणाः महावीरो नाथकुलतिलकः ॥ ८४ पासो | पार्श्वविमस्तुप्रबंधो मुनिसुव्रतो नेमीश्वरश्च हरिवंश: धर्मकुन्थ्वरजिना: कुरुवंशजाः शेषाः इक्ष्वाकुवंशजाः ॥ ८४६ ॥ तीर्थङ्करों के शरीर का वर्णादि और उनके वंश को तीन गाथाओं द्वारा कहते हैं। : गाथा :- पद्मप्रभ और वासुपूज्य ये दो तीर्थङ्कर रक्त वर्ग, चन्द्र प्रभु और पुष्पदन्त ये दो श्वेत व सुपार्श्वनाथ और पाश्यंनाथ ये दो नील वर्ण, मुनिसुव्रत और नेमिनाथ ये दो कृष्ण व तथा शेष सोलह सीकर स्वर्ण सदृश वर्णं वाले थे । वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर ये पाँच तीर्थंकर कुमार श्रमण हैं। महावीर नाथवंश के तिलक हैं। तथा पार्श्वनाथ उग्रवंश में, मुनिसुत्रल और नेमिनाथ हरिवंश में, धर्म, कुन्यु और बरनाथ कुरुवंश में तथा अवशेष संग्रह तीर्थंकर इत्राकुवंश में उत्पन्न हुए थे || ८४७ ८४८,८४ विशेषार्थ :- पद्मपन और वासुपूज्य ये दो तीर्थंकर रक्तवर्ण, चन्द्रप्रभ पुष्पदन्त दवेतवर्णं, सुपार्श्वनाथ और पार्श्वनाथ नोलवर मुनिसुव्रत और नेमिनाथ कृष्णवणं तथा शेष सोलह तीर्थंकर
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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