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विछोकसार
पापा:५३-
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अब इनका प्रवर्तन काल बताते हैं
पामापं :--वृषम और अजित मिनेन्द्र के काल में क्रमशः प्रथम और द्वितीय रुद्र हए । अन्य सात रुद्र पुष्पदन्तादि सात जिनेन्द्रों के कालों में हुए। पीठ नामक दसवा रुद्र शान्ति जिनेन्द्र के काल में और अन्तिम सस्यकारमज वोर जिनेन्द्र के काल में उत्पन्न हुआ।। ८३०॥
विशेषार्ष:-वृषम जिनेन्द्र के काल में भीमावलि, अजितजिनेन्द्र के काल में जितशत्र तथा गुष्पदन्त मे धर्मनाथ पर्यन्त सात तीथंकरों के काल में रुद्र से जितनाभि पर्यन्त सात, पान्तिनाथ के काल में पीठ और वीर जिनेन्द्र के काल में अन्तिम सत्यकात्मज नामक रुद्र हुए हैं । अथ तेषां शरीरोसेघमाह
पणसय पण्णूणसयं पंचसु दसहीणम चउवीसं । तक्कायधणुस्सेहो सच्चहतणयस्ससत्करा || ८३८ ।। पञ्चशतं पश्चाशदून शतं पञ्चसु दशहीने अष्ट चतुर्विषतिः।
गलामालेमा प्राधिकापस्य सप्तकरः ॥ १८ ॥ पण । तेषां शरीरोसेघः कमेण पञ्चशतवापानि ५०. ताम्येव पश्चाशदूनानि ४५० शतचापानि १०० ततः परं पश्नसु वाहीनानि 01 0०१७०।६।५०प्रविशतिचापानि २८ पविशतिजापानि २४ सस्यक्तिमयस्य तु सप्त हस्ताः स्युः ॥ ८३n
अब उनके शारीर का उत्लेष कहते हैं
पापापं:-उन रुद्रों के शरीर की ऊंचाई क्रमश: ५०० धनुष, ४५० धनुष, १०० धनुष, १० धनुष, ८० धनुष, ७७ धनुष, ६० धनुष, ५० धनुष, २८ धनुष, २४ धनुष तथा अन्तिम पस्यकितनय की (ऊँचाई ) सात हाथ प्रमाण पी॥ ३८ ॥ अथ तेषामायुष्यमाइ
तेसीदिगिसत्तरि विगि लक्खा पुवाणि वास लक्खाओ । चुलसीदि सहि दसु दसहीणदलिगि वस्सणवसठ्ठी ।।८३९|| पशीतिरेकसप्ततिः तय के लक्षपूर्वाणि वर्षलक्षानि ।
चतुरशीतिः पष्टिः द्वयोः दाहीनदल के वर्षनवषष्टिः॥ १३ ॥ देसी । तेषामायुः कमेण ज्योति ८३ लभारिण, एकसप्तति ७१ लक्षपूर्वारिण, वि २ लक्षपूर्वाणि, एकलक्षपूर्वाणि । लतः परं चतुरशीति ८४ लमवर्षाणि षष्टि ६० लक्षवर्वाणि इतो द्वयोवंश बहीनानि ५० । ४० IND तलमितानि २० स० एकलवाणि । न० नवहिणि ६९ स्युः ॥८३६॥