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________________ गाथा:८३६-३७ नरतिर्यग्लोकाधिकार ६५१ कलह । कलहप्रियाः कवाविव मरता: वासुदेवसमकाला भस्मारते हिसायोमेल नरकात गच्छन्ति ॥ ८३५ ।। अब नारदों के नामादि दो गाथाओं द्वारा कहते हैं पायाय :-भीम, महाभीम, रुद्र, महारुद्र, काल, महाकाल, दुमुष, नरकमुख पौर अधोमुख ये ६ नारद थे। ये कलहप्रिय, कदाचिद्ध मरत और भव्य होते हैं। इनका वर्तना का नारायणों के सदृश है। ये हिंसा दोष के कारण नरक गति को ही प्राप्त होते हैं ।। ८३४, ८३५ ॥ विशेषा:- भीम, २. महाभीम, ३ रुद्र, ४ महारा, ५ काल, ६ महाकाल, ७ दुमुख, ८ नरकममा और अधोसुस्त गे ना मारत होते हैं ! इनका स्वभाव कलहप्रिय होता है, ये कदाचिद्धमरत भी होते हैं। इनका वर्तनाकाल नारायणों के सदृश हो होता है । अर्थात ये नारायणों के काल में ही होते हैं । ये मध्य हैं अतः परम्परा सिद्धि प्राप्त करेंगे किन्तु वर्तमान पर्याय में हिंसा दोष के कारण नरकति को ही प्राप्त होते हैं। इदानी रुद्राणां संज्ञापूर्वक संख्यामाइ भीमावलि जिदसत्त रुह विसालणयण सुप्पदिद्वचला । तो पूंडरीय अजिदंधर जिदणाभीय पीड सच्चाजो ।।८३६।। भीमावलिः जितशत्रुः रुद्रः विशालनयनः सुप्रतिष्ठोऽचलः । तता पुण्डरीक अजितन्धरो जितनाभिः पीठः सस्यकिजः ||८३६॥ भीमा। भोमालिशितशः को विज्ञापनयन: सुप्रतियोऽचलस्ततः पुण्डपोकोऽजित धरो जितनाभिः पीठः सत्यकात्मज हत्येते एकादश का स्युः ।। ८३६ ॥ रुद्रों के नाम और उनकी संख्या कहते हैं गाया:- भीमावलि, जितशत्र, रुद्र, विशालनयन, सुप्रतिष्ठ, अचल, पुग्दरीक, अजितन्धर, जितनाभि, पीठ और सत्यकात्मज ये ग्यारह रुद्र हुए हैं ।। ८३६ ॥ अथ तैः प्रवर्तितकाल माद उसहदुकाले पढमदु मचण्णे सच सुविहिपहुदीसु । पीडो संतिजिणिदे वीरे सच्चइसुदो जादो ।। ८३७ । । वृषद्विकाले प्रथम सप्तान्ये सह मुविधिप्रभृतिषु । पोठः शान्तिजिनेन्द्रे वारे सत्यकिसुतो जातः ॥ ८३७ ।। उसह। वृषभाजितयो: काले प्रथमढितोयो भवतः ततः परमन्ये सप्त सप्त सुपुष्षयसारिजिनकालेषु च भवन्तीति । पोठः शान्तिजिनेन्द्रकाले स्पात् । सस्यकिसुतो वोरनिनेन्द्रकाले जातः ८३४॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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