________________
पाथा: ८२७-८२८
नरलियंग्लोकाधिकार
हुए हैं। अरनाथ और मल्लिनाय के अन्तराल में छठवी नारायण, मल्लिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ के अन्तराल में सातवा पुरुषदत्त नारायण, मुनिसुत्रत ओर नमिनाथ के अन्तराल में आठवां और नेमिनाथ के काल में नवमा कृष्णा नामक नारायण की उत्पत्ति हुई थी। ८२६॥
विशेषापं :-बेयांसनाथ भगवान के समय में विपृष्ठ नारायण जत्पन्न हुआ था, वासुपूज्य के ममय में द्विपृष्ठ, विमलनाथ के समय में स्वयम्भू, अनन्तनाथ के समय में पुरुषोत्तम, पमनाथ के समय में पुरुषसिंहअर और मल्लिनाथ के अन्तराल में पुरुष पुण्डरीक, मल्लि और मुनिसुव्रतनाथ के अन्तराल में पुरुषदत्त, मुनिसुव्रत और नैमिनाथ के अन्तराल में लक्ष्मण और नेमिनाथ के काल में कृष्णनारायण को उत्पत्ति हुई थी। नारायणी का जो वतना काल है वही वतना काल बलदेव और प्रतिनारायणों
अथ बलदेवप्रतिवासुदेवानो नामानि गाथाद्वयेनाह
वलपेपा विजयारला मुबंगणा दी। ' तो शंदिमित्त रामा पउमा उपरि तु पढिसच ।। ८२७ ।। अस्सग्मीयो तारय मेरयय णिसुंम कइडईत मह ।। बलि पहरण रावणया खचरा भूचर जरासंधो ।। ८२८ ।। बलदेवा विजयाचलसुधर्मसुप्रभसुदर्शना नन्दी। ततो गदिमित्रः रामः पद्मः उपरि तु प्रतिशत्रवः ।। ८२७ ।। अश्वग्रीवः तारक: मेरकश्च निशुम्भः केटभान्तो मधुः।।
अलि: प्रहरणः रावणः खचराः भूवरो जरासन्धः ॥ ८२८ ।। बल । विजयोल: सुधर्मः सुप्रभः सुशंभो नयी ततो नन्दिमित्रो रामः पन येते न बलदेवाः स्युः । इत उपरि तेषां प्रतिशत्रवः कस्यन्ते ॥२७॥
पस । अश्वनीवरतारको मेरकच निशुम्भो मधुकैटभो बलिः प्रहरणो रावरणश्चेति सचराः भूचरोवरासन्धः । इत्येते नव प्रतिवासुदेवाः ।। २८ ॥
बलदेव और प्रतिवासुदेव के नाम दो गाथाओं द्वारा कहते हैं :- .
गाया:--विजय, अचल, सुषम, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दिमित्र, राम और पाये नव बलदेव हैं। इनके प्रतिशत्र अश्वग्रीव, तारक, मेरक, निशुम्भ, मधुकैटभ, बलि, पहरण और रावण ये आठ विद्याधर और भूमिगोचरो जरासिन्धु ये नौ प्रतिवासुदेव है ।। २२७-१२८॥
अथवलदेवादित्रयाणामुत्सेधमाह