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________________ ६४६ त्रिलोकसार गाथा।१५-१६ साम्प्रतमपंचक्रिरणा नामान्याह तिविद्वविठ्ठसयंभू पुरिसुचमपुरिससिंहपुरिसादी। पुंडरियदर पारायण किण्हो अद्धचक्कारा ।। ८२५ ॥ त्रिपृष्ठविपृष्ठस्वयम्भूः पुरुषोत्तमः पुरुषसिंहः पुरुषादिः । पुण्यारोकदत्त: नारायणः कृष्णः अधचक्रधराः।। ८२५ ।। तिबिटु । त्रिपृष्ठो निपृष्ठः स्यम्भूः पुरुषोत्तमः पुरुषसिंहः पुरवपुण्डरीका पुरुष नारायणा हमणश्यति नवायचपराः स्युः । प्रसङ्गन बलवासुरेनमोर्यपासंख्य मायुपरलमाह मिलो धनरुप मणिः शक्तिका हरेः । रत्नमाला हलं भावनामस्य मुशल गया ॥ ८२५ ॥" अब मधं चकी ( नारायण ) के नाम कहते हैं : पावार्य :-त्रिपृष्ट, दिपष्ट, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुष पुण्डरीक पुरुषदत्त, नारायण मोर कुष्ण ये नव अर्ध चक्रवर्ती ( नारायण ) हए हैं ॥ ८२५।। विशेषार्थ:-1 त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, ३ स्वयम्भू, ४ पुरुषोत्तम, ५ पुरुषसिंह, ६ पुरुष पुरीक, . पुरुषरत, ८ नारायण ( लक्ष्मण ) और ९ कृष्ण ये ६ अर्धचको हुए हैं। प्रसङ्ग पाकर यहाँ कमशः बमभद्र धौर नारायण के छायुधरत्न कहते हैं :-१ असि, २ शङ्ख, ३ धनुष, ४ चक, ५ मणि, ६ शक्ति और गदा ये सात नारायण के आयुध रत्न हैं, तथा १ रत्नों को माला, २ हल, ३ भूसल और४ गदा ये पार बलभद्र के आयुध रस्न हैं। अथ तेषां चल देववासुदेवप्रतिवासुदेवानां वर्तनाकालमाह सेयादिपणसु हरिपण छट्ठरदुगविरह मन्लिदुगमज्मे । दो अहम सुब्बयाविरहे गोमिकालजी किण्डो ।। ८२६ ।। श्रेयोबादिपश्चसु हरिपञ्च षष्ठः अरद्विकविर हे मल्लिद्विकमध्ये । दत्तः अष्टमः सुव्रतद्वयविरहे नेमिकालजः कृष्णः ।। ८२६ ।। सेया। श्रेयोखिमारिपचतोयंकरकालेषु त्रिपृष्ठावयः पञ्च भान्ति। पठः पुरुषपुण्डरीकोऽरमम्मितीयंकरयोरन्तरे भवति, पुषवत्तो मल्लिमुनिसुव्रतयोर्मध्ये भवति, ग्रहमो नारायणो मुनिसुव्रत. ममिनितयोविरहकाले म्यात, कृष्णस्तु नेमीश्वरकाले उत्पन्नः ॥ २६ ॥ अब उन बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेवों का वर्तना काल कहते हैं :पापा:-श्रेयांसनाथ आदि पांच तीर्थंकरों के काल में कम से त्रिपृष्ट भावि पांच नारायण
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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