________________
बिलोकसाय
चौदह रातों के नाम व उत्पत्तिस्थान कहते हैं
गावार्थ:-सेनापति, गृहपति, स्थपति ( कारीगर ), पुरोधा ( पुरोहित ), गज, घोड़ा मोर युबती ये सात रत्न विजयाघं पर्यंत पर, काकणी रत्न, चूड़ामणि रन और चर्मरत्न ये तीन रत्न श्रीगृह में तथा असि, दण्ड, छत्र और चकरन चार रत्न आयुधशाला में उत्पन्न होते हैं ।। ८२३ ॥
६४४
विशेषार्थ:-सेनापति-सेनानायक, गृहपति भण्डारी, स्थपति-कारीगर, पुरोधाः पुरोहित, गज, घोड़ा ओर युवति ये सात रश्न विजयार्ध पर्वत पर उत्पन्न होते हैं। वृषभाचल पर नाम लिखने का कारणभूत काकणी रत्न, विजयावं की गुफा में प्रकाश का कारणभूत चूड़ामणि रत्न और जल बाधा निवारण का कारण भूत चर्मरत्न श्री गृह में उत्पन्न होते हैं तथा असि. दण्ड, छत्र मोर चक्ररल आयुधशाला मे उत्पन्न होते हैं ।
य
श्रथ तेषां गतिविशेषमाह -
aaj meकुमारी सणक्कुमारं सुमोम बम्हा म ।
सक्षम पुढ पत्ता मोक्खं
सट्टचक्कद्वरा ।। ८२४ ॥
पचचात् सनत्कुशः स्व
सुनो बहाव
समपृथिवीं प्राप्ती मोक्षं शेषाष्टचक्रधरा ॥ ८२४ ।।
१] सनत्कुमारा ( २० ) ।
गाया : ६२४
मघवं । मघवान् सनत्कुमारतच सनत्कुमारं ' स्वर्गमापत, सुभौमो ब्रह्मदत्तश्च सप्तमी पृथ्वी प्रापत शेषा प्रवृचक्रधरा मोक्षमापुः ॥ ८२४ ॥
उन चक्रवर्तियों की गतिविशेष कहते हैं
गावार्थ :- मघवान् और सनत्कुमार, सरनरकुमार स्वर्ग गए हैं। सुभम और ब्रह्मदत्त सप्तम पृथ्वी (सातवें नरक) गए हैं तथा शेष आठ चक्रवर्ती मोक्षपद को प्राप्त हुए हैं । ८२४ ॥
[ कृपया चार्ट अगले पृष्ठ पर देखिए ]