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________________ गाथा : ६२२-८२३ नरतियरलोकाधिक ६४३ नवनिधियों के नाम गाणा : - काल, महाकाल, माणवक, पिङ्गल, नैसर्प, पद्म. पाण्डु, शङ्ख और अनेक रल ये मानपिपा आगे बह जाने जा करती हैं . अथ नवनिधिभिदीयमानफलमाह उडुजोगकुसुमदामप्पहुदिं भाजणयमाउहाभरणं । गेहं पत्थं धष्णं तूरं बहरयणमणुकमसो ।। ८२२ ।। ऋतुयोग्यकुसुमदामप्रभूति भाजनायुधाभरणं ।। गेह वस्त्र धान्यं सूर्य बहुरस्नमनुक्रमशः ।। ८२२ ।। उखु । ते निषयोऽनुक्रमेण ऋोग्यकुसुमबामप्रतिभाजनमायुषमाभरणं गेहूं वस्त्र धान्य तूर्य बहराने व बयते ॥ २२ ॥ नवनिधियों द्वारा दिए जाने वाले फल को कहते हैं : गामार्ण :-वे निधियां क्रमशः ऋतु योग्य पुष्प, भाला आदि, वर्तन, आयुध, अलकार, गृह, वस्त्र, धान्य, तूयं ( बाजे ) और नाना प्रकार के रत्न देती हैं ।। ८२२ ।। विशेषा :-काल नाम की प्रथम निधि ऋतुयोग्य पुष्प, माला आदि देती है। महाकाल, वर्तन देती है। माणवक निषि आयुध, पिङ्गल निषि अलङ्कार नैसर्प निधि गृह-मकान, पद्म निधि वस्त्र. पाण्डुनिधि पाम्म, शङ्खनिधि दावित्र और नानारत्न नामक निधि नाना प्रकार के रत्न देती है। इन निधियों का आकार आठ चक्के की गाड़ी के सदृश होता है, उनमें से ये वस्तुएं निकालती रहती हैं। अथ चतुर्दशरलानां संजापूर्वक मुत्पत्तिस्थानमाह सेणिगिहथवादि पुरहो गयहयजुबई हवंति वेयड्ने । मिरिंगेहे कागिणिमणिचम्माउहगेसिदंरचमरी ।। ८२३ ॥ मेनागृहस्थपति: पुरोधा गजो यो युवतिः भवन्ति विजयाचें । श्रीगेहे काकिणीमणिच युधके असिण्डछत्रमरी' ॥ ८२३ ।। लेरिण । सेमापतिः गृहपतिः स्यतिः पुरोधा: पो हपो पुतिरित्येते विजया भवति भौगेहे काकिणो मामणिधर्मरत्नमित्येतानि भवन्ति । पापुषोहे पसिनाकारत्नमित्येतानि भवन्ति ॥ २३ ॥ १ अरा विद्यन्त यस्य सोहरी, चकरलमित्यर्थः ।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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