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________________ पाया : ८१-८१९-८२० नरतियंग्लोकाधिकार मनि। मनिमुनिसुवायो मध्ये मनमो महापनो मात: मुनिसुव्रतनामिबिनयोरन्तरे दशमो हरिणो जातः, मिनेमिभिनयोरगारे अथाल्यो मातः' नेमिपा जिमयोरम्सरे ब्रह्मवत्तारूपो जासः ||८१७॥ दो गाथाओं द्वारा इन घातियों का वर्तना काल कहते हैं :-- गाथा:-भरत और सगर ये दो चक्रवर्ती क्रमशः वृषभ और अषित जिनेन्द्र के काल में, मघवान और सनत्कुमार पर्व और शान्तिनाथ के अन्तराल में, शान्ति, कुन्थु और अर ये तीन चक्रवर्ती स्वय जिन थे। सुभीम चक्रो अर और मलिनाथ के अन्तराल में, महापद्म चक्रवर्ती मल्लिनाथ बीर मुनिसुयत नाय के अन्तराल के मध्य में, हरिषेण, मुनिसुव्रत और नमि के अन्तराल में. जय चक्रवर्ती नमि और नेमिनाथ के अन्तगल में और ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती नेमिनाथ और पाश्र्धनाथ के अन्तराल में अथ चपराणां शारीरस्य वर्गमुत्सेधं तदायुष्यं च गाथात्रयेणाह - सब्वे सुअण्णवण्णा नद्देदो घणुण पंचसयं । पण्णामूर्ण सदलं दालिमिदालयं तालं ।। ८१८ ।। पणतीस तीस महदुखवीसं पण्णरसमाउ चुलसीदि । बावच रिपुल्याणं पणतिगिवासाणमिह लक्खा ॥ ८१९ ।। संबच्छरा सहस्सा पणणउदी चउरसी दि सट्ठी य । तीसं दसयं तिदयं सचसया बादस्म ।। ८२० ॥ सर्वे सुवर्णवर्णा तद्द होदयो धनुषां पश्वगतं । पश्चासानं सदल द्वाचत्वारिशदेकचत्वारिंशत् चत्वारिंशत् ॥१८॥ पत्रिशत् त्रिशदष्ट दिःविशतिः पञ्चदशकमायु: चतुरशीतिः । द्वासप्ततिपूर्वाणा पश्चत्रिकवर्षाणामिह लक्षाणि ॥८१६ ॥ सवत्सरा। सहस्राः पचनति: चतुरशीतिः षष्टिश्च । त्रिशस्त दवा त्रितयं सप्तशतानि ब्रह्मदत्तस्य ॥ ८२०॥ साये। सर्व वणिः सुवर्णवरणः तेषा व्होत्सेपः मेण धनुषा पब्बशतं ५०० पञ्चावून तदेव ४५० बल सहिता द्वावरवाशित १५ बलसहितंकवल्बारिश बारिश ॥ctun पाग । पञ्चत्रिशव ५ त्रिशव ३. महाविशतिः २८ साविति: २२ विशतिः २० पञ्चाश १५ . ममिनेम्पोमध्ये जयास एकादको बात (40, 4.)।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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