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पर
१००००००००ooooo **200*#*#**#0 अपवर्तन करने पर रे पल्य प्राप्त हुए । इन पर पलय में से
त्रिलोकसार
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करने पर
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पल्या होत हैं। इनमें शके १६ शून्यों का हर के
७२ लाख ६०
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कम और पल्य अवशेष रहता है। इसे ही करण सूत्र द्वारा सिद्ध करते हैं कर प्रत्येक को दश दश करने पर x * -
से गुणित करते हुए अन्तधन दे पल्य
प्राप्त होता है। इसमें से आदि धन
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७२०००००००००ongs
ऋण घटा देने पर कुछ से प्रारम्भ ६ लॉ० क०
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प्राप्त हो जाता है। गुणकार १० से गुणा
घटाने के लिए समच्छेद
प० १ ला० क०
घटाने पर
१० १ मला० क०
परय प्राप्त होते हैं। इनमें से आदि धन
पत्य अवशेष रहे। इसमें एक कम गुणकार (१०
- १
प० १
७१.०००००००००००
ऋण को पल्य में से कम कर देने पर कु कमरे पल्य अवशेष रहते हैं ।
प्राप्त हुए। इसमें पूर्वोक्त ऋण
पश्य होते हैं और इनका अपवर्तन करने पर उरे पल्य हुए तथा
भाषा : ७१८
१३ शून्य से
=१ का भाग देने पर
ड) हुए। अर्थात् कुछ कम पल्य का आठवाँ ( कुछ कम है पल्य ) भाग प्राप्त होता है । अथ मनुभिः क्रियमाण शिक्षा तेषामङ्गवर्ण चाह
मिलाने पर -
हा हामा हामाधिक्कारा पणपंच पण सियामलया | चक्खुम्मदुग पसेणाचंदाहो भवलसेस कणपणिहा ।। ७९८ ।। हाहामा हामाधिक्काराः पच पच पच श्यामलों ।
चक्षुष्मद्विकं प्रसेनचन्द्रामी धवली शेषाः कनकनिभाः ॥ ७३८६८||
इन कपल्यों में सर्व फुलकरों की आयु का प्रमाण कुछ कम हे पल्य जोड़ देने से (उई+ पल्य से कुछ कम प्राप्त होते हैं। इन्हें से अपवर्तित करने पर कुछ कम ( ) है पल्य
प० १ पर ला०क०
हा हा । प्रथमपचमभवः अपराधिनो हाकारेण वच्चयन्ति ततः परं पञ्च मनवः हामाकारेण ण्डयन्ति लघुपरिमपञ्चमनवः हामाधिक्कारेण दण्डयन्ति । चक्षुष्मान् यशस्वीति द्वौ श्यामलौ प्रसेनचन्द्राभो घवली, शेषाः सर्वे कनकनिभाः ॥ ७३८ ॥
अगे कुलकरों के द्वारा किया हुआ दण्ड विधान ( शिक्षा ) एवं उनके शरीर का वर्ण कहते हैं :
गावार्थ :- आदि के पांच कुलकर अपराधी पुरुषों को 'हा'; आगे के अन्य पाँच कुलकर 'हा- मा' तथा अवशेष अन्तिम पाँच कुलकर 'हा-पाधिक' इस प्रकार दण्ड देते थे। चक्षुष्मान् औष