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________________ ६३१ पापा : ७६१-200-2०१ नतिर्यग्लोकाधिकार यशस्वी ये वो कुलकर श्यामवणं, प्रसेनजित् और चन्द्राभ ये दो धवल वणं तथा अवशेष सभी कुलकर स्वर्ण सदृश वर्ण के धारक थे ॥ ७ ॥ विशेषार्थी-बादि के पाँच कुलकर अपराधियों के लिए हा प्रयत् हाद यह पुरा किया मात्र इतमा ही दण्ड देते थे। आगे के अन्य पाँच कुलकर 'हा-मा' अर्थात् हाय बुरा क्रिया अब नहीं करना; इतना दण्ड देते थे तथा अवशेष अन्तिम पाँच कुलकर 'हा-मा-धिक' अर्थात् हाय ! मत करो तुम्हें धिक्कार है, इस प्रकार का दण्ड देते थे। नोट :-वृषभनाप सीकर को भी कुलकर माना गया है, इसीलिए उपयुक्त गाथा में १५ कुलकर कहे गये हैं। चक्षुष्मान् और यशस्वी ये दो कुलकर श्यामवणं, प्रसेनजित् और चन्द्राभ ये दो धवलवर्ण तथा शेष कुलकर स्वर्ण सदृश वर्ण के धारक थे। अथ तत्तत्काले तैः क्रियमाणकृत्यं गाथाचतुष्टयेनाह इणससितारासावद विभयं दंदादिसीमचिण्हकादि । तुरगादिवाहणं सिसुमुहदसणणिन्मयं यति ।। ७९९ ।। यासीवादादि ससिपहुदिहि केलिं च कदिचिदिणमोचि । पुचेहि चिरंजीवण सेदुवा हिचादि तरणविहिं ।। ८..॥ सिक्खंति जराउछिदि शामिविणासिंदचावतडिदादि । चरिमो फलमकदोसहिसुचिं कम्मावणी तपो ।। ८.१॥ इनशशिताराश्वापदविभय दण्डादिसीमचिह्नकृति । तुरगादिवाहनं शिशुमुखदर्शननिर्भयं अरन्ति ।। RA || आशीर्वादादि शशिप्रभूतिभिः केलि प कतिचिद्दिनातम् । पुत्रः चिरं जीवनं सेतुहित्रादिभिः तरणविधि ।। ८०० ॥ शिक्षयति जरायुछिदि नाभिविनाशं इन्चापतडिदादि। चरमः फलाकृतौषधिभुक्ति कर्मावनिस्ततः ॥ ८०१॥ इस । प्रथमो मनुः प्रजानामिनशशिर्वानाज्जातभयं निधारमति, हिलीयस्ताराशनमय, तृतीयः करमृगाभय तर्जनेन, बतुर्षस्तावद्भय पुनर्वण्याविना निवारयति, पञ्चमोल्पफलरायिनो कल्पने झकटं दृष्ट्वा सोमां करोति तपापि झकटे जाते षवः सीमाबित करोति, सप्तमो गमने तुरगादिवाहन करोति मामः शिशुमुखदर्शनानिभयं भवोति ॥ ७ ॥ मासी । नवमः शिशूनामाशीर्वादादिकं शियति, वशमा कतिचिदिनपर्यन शशिप्रभृतिभिः
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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