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विलोकमार
पापा : ७६५-७११ प्राप्त किया है। अर्थात् सायिक सम्पष्टि हुए हैं, वे यहाँ क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होते हैं। उनमें से कोई तो जातिस्मरण से और कोई अवधिशान से संयुक्त होते हैं ॥ ॥२, ७९३, ७५४ ॥
विशेषार्थ :-इस अवसर्पिणो काल के तृतीयकाल ( सुषमादुःषमा ) में जब मात्र पल्य का आठवा भाग अवशेष रहा तब कुलकर उत्पन्न हुए। वे कौन हैं ? १ प्रतिश्रुति, २ सन्मति, क्षेमङ्कर, ४ क्षेमन्धर, ५ सीमकर, सीमन्धर, " विमलबाहन, ८ चक्षुष्मान, ! यशस्वी, १० प्रभिचन्द्र, ११ चन्द्राभ, १२ मरुदेव, १३ प्रसेनजितांक और १४ नाभिराय ये चौदह कुलकर मनुष्य उत्पन्न हुए हैं तथा नाभिराय कुलकर के पुत्र वृषभदेव प्रथम तीर्थकर हुए हैं। ये सभी कुलकर विदेह में सत्पात्र दान से मनुष्यायु बांध कर पीछे क्षायिक सम्यग्दृष्टि हो यहा क्षत्रिय कुल में उत्पन्न होते हैं। यद्यपि इनको उत्पत्ति के समय कुलादि की प्रवृत्ति प्रारम्भ नहीं हुई थी फिन्तु 'भाविनि भूतबदुपचारः' इस न्याय के अनुसार भविष्य में भूत सदृश उपचार कर क्षत्रिय कुल में उत्पत्ति कही गई है। इन कुलकरों में कोई तो जातिस्मरण और कोई अवधिज्ञान सहित थे। अय कुलकराणां शरीरोत्सेधमाह
अट्ठारस वेरस अडसदाणि पशुवीसहीणयाणि तदो। चावाणि कुलयराणं सरीरतुंगनणे कमसी ।। ७९५ ।। अष्टादश त्रयोदश अष्टाशतानि पञ्चविंशतिहीनामि ततः।
चापानि कुलकराणां शारीरतुणत्व क्रमश: || ७९५ ॥ अट्ठारस | महावशशतानि १८०० त्रयोदशशतानि १३०० प्रशतानि ८०० ततः परं मशा पञ्चविंशतिहीनानि ७७५ । ७५० । ७२५ । ७००। ६७५ । ६५० । ६२५। ६०० | ५७५५५०। ५२५ । ५०० एतानि सर्वाणि चापानि कुलकराणां शरीरतुङ्गवमिति मातव्यम् ।। ७६५ ॥
कुल करों के शरीर का उसेष कहते हैं
गापा:-कुलकरों के शरीर की ऊंचाई क्रमपाः १८०० धनुष, १३०० धनुष, ८०० धनुष और इसके बाद पच्चीस पच्चीस धनुषहीन अर्थात् ७७५, ७५०, ७२५, ८००, ६४५, ६५, ६२५, ६००, ५४५१ ५४०, ५२५ और ५०० धनुष प्रमाण थी॥ ७६५ ।। तेषामायुष्यं कथयति--
माऊ पन्लदसंसो पढमे सेसेसु दसहि मजिदकमं । परिमे दु पुब्बकोडी जोगे किंचूण तण्णवमं ।। ७९६ ।। आयुः पल्यदाया: प्रथमे शेषेषु दशभिः भक्त कमः । भरमे तु पूर्वकोटिः योगे किचिदून तनवमं ॥ ७९६ ॥