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बाथा : ७६२ से १४ नरतियंग्लोकाधिकार
६२१ जापा:-आयु के अन्त में पुरुष और स्त्री क्रमशः छींक और जम्भाई के द्वारा मरण को प्राप्त होते हैं। मृत्यु के बाद उनके शरीर शरद् ऋतु के नंध में समा गयोग ले जाते है ! इनमें मिध्याइष्टि जीव भवनतिक में और सम्यग्दृष्टि जीव सौधर्मशान स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं ॥ १ ॥ अथ कर्मभूमिप्रवेश क्रमं तत्रस्थमनूनां च स्वरूपं गाथात्रयेण प्रतिपादयति--
पग्लट्ठमं तु सि? तदिए कुलकरणरा पडिस्सुदिमो । सम्मदिखेमंकरघर सीमकरधर विमलादिवाहणवो ।। ७९२ ॥ चक्खुम्मजसस्सी अहिचंदो चंदाहमो मरुद्द मो । होदि पसेणजिदंको णामी तण्णंदणो वसहो ।। ७९३ ॥ वरदाणदो विदेहे बद्धणराऊय खायसंदिहि । इह खचियकुलजादा केहआइन्भरा मोही ।। ७९४ ।। पल्याष्ट में तु शिष्टे तृतीये कुखकरनराः प्रतिषतिः। सम्मतिः क्षेमकरघरा सीमकरधरः विमलादिवाहनः ॥७६२।। चक्षुष्मान् यशस्वी अभिचन्द्रः चन्द्राभः मरुद्दवः। भवति प्रसेनजिताङ्कः नाभिस्तन्नन्दनो वृषभः ॥ १३ ॥ वरदानतो विदेहे बद्धनरायुषा क्षायिकसंदृष्टयः ।
इह क्षत्रियकुलजाताः केचिजातिस्मरा अवषयः ॥ ७६४ ।। परल । तृतीयकाले पल्याटम भागेऽवशिष्टे कुलकराः मरा: उत्पयन्ते। ते के। प्रतितिः सन्मतिः क्षेमकरः क्षेमधरःप्लोमर सीमन्बर। विमलवाहमः ॥७६२ ।।
चा। चक्षुष्मान यशस्वी अभिचन्द्रश्चन्द्राभः मवद्दयः प्रसेनजिद नाभिः तन्नन्दनो वृषभो भवति ।। ७६३ ।।
वर । सत्पात्रमानवशानिनेहे बहनरायुषः शापिकसम्यापः भाविनि भूतवपचार' इति ध्यायेनेह क्षत्रियकुले जाता: केधिग्जासिस्मराः केचितवषितानिनः ॥ ७६४ ॥
अब तीन गायामों द्वारा कर्मभूमि के प्रवेश का क्रम और वहाँ स्थित कुलकरों के स्वरूप का प्रतिपादन करते है--
गाथा:-तृतीयकाल में पल्य का आठवा भाग अवशिष्ट रहने पर प्रविश्रुति, सन्मति, क्षेमकर, क्षेमन्धर, सीमङ्कर, सीमन्धर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वी, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसेनजित्, नाभिराय और उनके पुत्र वृषभदेव ये कुलकर मनुष्य उत्पन्न हुए हैं।
विदेह में मस्पात्रदान के फल से जिन्होंने मनुष्यायु का बंध करने के बाद क्षायिक सभ्यवस्व