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________________ २२ चिलोकसार पाथा:७५६ छह फालों के नाम, काल का प्रमाण, मनुष्यों की आयु, उत्सेच, परोष का वर्ग पौष आहार बादि का सखित वर्णन : कालों के नाम स्थिति प्रमाण ! मनुष्यों को आयु शरीर का उत्सेध वर्ण माहारा सहाशा । सुषमासुषमा ४ कोड़ा सागर ३ पल्य-२ एल्य तीन कोश-दो कोश वदित सूर्य के तीन दिन बाद २ सुषमा कोड़ा. . | २ पल्म-६ पल्म दो कोश-१ कोश पूर्ण चन्द्र सदृश दो , , सुषमा-दुषमा २ " . १ पल्य-पूर्वकोटिकोश-५०० धनुष प्रियंगु . | एक . . ४२.०.वर्ष दुःषमा-सुषमा कम १ को सा. १ पूर्वकोटि-१२० ५०० धनुष- हाथ पांचों वर्ण - प्रतिदिन एक बार वर्ष कान्ति होनदुःषमा २१००० वर्ष १२० वर्ष-२० वर्ष ७ हस्त-दो हस्त पांचों वर्ण बहुत वार दुःषमादुःषमा २१००० " १० वर्ष-१५ वर्ष | दो हस्त- हस्त घूम वर्ण » | बारम्बार अब भोगभूमिमानामाहारप्रमाणे निवेदयति बदरखामलयप्पमकप्पडुमदिण्णदिब्वहारा | वरपडदितिभोगक्षुमा मंदकसाया विणीहारा ।। ७८६ ।। बदराक्षामलकप्रमकल्पद मदत्तदिव्याहाराः । करप्रभृतित्रिभोगभूमाना मन्दकषाया विनीहाराः ॥७६६।। बर। उत्कृयाविधिविषभोगभूमिजाः कमेण नवराक्षामलकप्रमाणकल्पनुमवत्तविन्याहारा: मत्वकषाया विनोहारा भवन्ति ।। ७६ ॥ भोग भूमिज मनुष्यों के आहार का प्रमाण कहते हैं: माथा:-कल्प वृक्षों द्वारा प्रदत्त उत्कृष्टादि तीनों भोग भूमिज मनुष्य क्रमशः बदरी फल, अक्ष फल और अविका प्रमाण दिव्य आहार करते हैं । ये सभी जीव मान्य कषायी और निहार में रहित होते हैं । ५८६ ॥ विशेषार्थ :---उत्तम भोग भूमिज मनुष्य वदो (बेस) फल के बराबर, मध्यम भोगभूमिज मनुष्य, पक्ष ( बहेड़ा ) फल के बराबर और जघन्य भोग भूमिज मनुष्य आंवले के बराबर कल्पवृक्षों द्वारा प्रदत्त दिव्य आहार करते हैं। ये सभी जीव मन्द कषायी तथा निहार अर्थात् मलमूत्र में रहित होते हैं।
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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