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पाषा : ७५५ नरतियंग्लोकाधिकार
६२१ हरितस्यामवर्णाः, अतुर्पकाले पनववर्णाः, पन्चमकाले कान्तिहीनमिबपञ्चवर्णाः षष्ठे काले घूमश्याम वर्णाश्च । एवं षट्काले वर्णकमो ज्ञातव्यः ॥ ७८४ ॥
अब छह कालवों के वर्णमामाले हैं।...
गाथार्य :- छहों कालवर्ती मनुष्यों के शरीर का वर्ण क्रम से उदित होते हुए सूर्य के सदृश, सम्पूर्ण चन्द्र सदृश, हरित-श्याम सदृश, पांचों वर्गों के सदृश कान्ति हीन पांचों वर्गों के सदृश और अन्तिम काल में धूम सहश श्याम वर्ण का होता है ॥ ७८४ ।।
विशेषार्ष:-प्रथम कालवर्ती मनुष्यों के शरीर का वर्ण उदित होते हुए सूर्य के सदृश, द्वितीय कालवर्ती मनुष्यों के शरीर का वर्ण पूर्ण चन्द्र सदृश, तृतीय कालवर्ती मनुष्यों के शरीर का वर्ण प्रियंगुहरिव श्याम वर्ण सदृश, चतुर्थ कालवर्ती मनुष्यों के शरीर का वर्ण पांचों वर्गों सदृश, पञ्चम कालवर्ती मनुष्यों के शरीर का वर्ण कान्ति हीन पांचों वर्णो सद्दश और षष्ठ कालवी मनुष्यों के शरीर का वर्ण घूम सदृश श्याम होता है। अथ तेषामाहारक्रम निरूपति
अहमढचउत्थेणाहारो पडिदिणेण पायेण | अतिपायेण य कमसो अकालणरा हवं तिचि ।।७८५|| अष्टमषष्ठचतुर्थेनाहारः प्रतिदिनेन प्राचुर्येण ।
अतिप्रात्रुर्येण च कमशः षट्कालनरा भवन्तीति ।। ७८५ ॥ प्रद। प्रथमकाले अहमवेलापां त्रिविनायरिया इत्यर्थः, द्वितीयकाले षष्पवेलाया विनयमन्तरिक्वेत्यर्थः, तृतीयकाले व्रतुर्षवेलायो एकदिनमन्तरिक्वेस्वयः, बर्षकाले प्रतिदिनमेकवार, पसमकामे बहुवार, षष्ठकालेऽतिप्रचुरपस्या । एवं षट्काले नराणामाहारसमो भवति ॥ ७८५ ॥
उनके आहार कम का निरूपण करते हैं :
गापाय :-छह काल के मनुष्य क्रम में अष्टमवेला अर्थात तीन दिन के बाद, पष्ठ बेला अर्थात दो दिन के बाद, चतुर्थ वेला अर्थात् एक दिन बाद, प्रतिदिन, प्रचुरता से और अतिप्रचुरता में भोजन करते हैं ।। ७०५ ||
विशेषार्थ :--प्रथमकालवर्ती मनुष्य तीन दिन के बाद, द्वितीय कालवी दो दिन के बाद, तृतीय कालवर्ती एक दिन के बाद, चतुर्थ कालवर्ती प्रतिदिन अर्थात् दिन में एक बार, पत्रम कालवी बहुत वार और षष्ठ कालवर्ती मनुष्य अति प्रचुर इति से अर्थात् मारम्वार आहार करते हैं।