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________________ पापा: नरतियग्छोकाधिकार तथा पूर्वोक्त कही हई गुण अर्थात् जीवा और धर्म अर्थात् धनुष के प्रमाण की सम्पूर्ण कला माधव मर्थात् १ और चन्द्र= १ अर्थात् १६. भाग रूप हैं ॥ ७ ॥ विशेषार्थ:-विदेह क्षेत्र के मध्य में जीवा का प्रमाण १००.०० योजन और धनुष का प्रमाण जम्बूद्वीप की परिधि ३१६२२० योजन ३ कोश, १२८ दण्ड और १३३ अंगुल के अधं भाग प्रमाण अर्थात् कुछ कम १५८११४ योजन है । इसी प्रकार ऐरावत आदि क्षेत्र, पवंत और अर्ध जम्बूद्वीप में भी जानना । गुण अर्थात् जीवा और धर्म अर्थात् धनुष के प्रमाणों की पूर्वोक्त कही हुई सम्पूर्ण कला अर्थात् योजन के अंश माधव ( नारायण ) के ९और चन्द्र का एक अर्थात १६ भाग स्वरूप है तथा पम में-जानादि गुण और अहिंमादि धर्मों में प्रसिद्ध जो सम्पूर्ण चातुर्य है वह माधव चन्द्र विद्यदेव के द्वारा उद्धृत अर्थात प्रकाशित है। अथ जीवानो धनुषां च चूलिका पार्श्वभुजं चाह-- पुश्वकरजीवसेसे दलिदे इह चूलियाति णाम इथे । घणुगुगसेसे दलिदे पामभुजा दक्खिणुचादो ||७७८।। पूर्वापरजीवाणषे दलिते इह चूलिका इति नाम भवेत् । धनुर्विकशेधे दलिते पाश्वभुजः दक्षिणोत्तरतः ॥ ७७८ ।। पुञ्च । दक्षिणे भातादौ उत्तरस्मिन्नरावतारी प पूपिरजोधपोरषिके हीनं शेषविस्वा दलिते शेषस्य धूलिकति नाम भवेत् । पूर्वापरधनुषोयं प्राग्वच्छेषयिस्वा मधित पार्वभुमः स्यात् । एतदेव विवरपतिसलिणभरतजीवा १७४८८३ विजयापजोक्यो १७७२० रषिके होनं शेषपिया ९७२ तवंशे इतरोशस्य : शोधनाभावात् मंशिनि १७२ एक गृहोरवा ९७१ समच्छेवं करमा प्रोतका २३ मपनीय शिमेलयेत राशे १७१ विषमत्वादेकमपनीय ६७० अर्षविस्वा xey संशं चापिस्वामपनीतकमपितरायंशत्वादविस्वा ३ वमपिताशं च परस्परहारगुणनेम समस्येवं कुरवा मेलयेत् एनायता विजयाधुलिका स्मात् वक्षिणभरतचाप ७६६ विजपा वापयो १०४४३२१ रन्योन्य शेषयित्वा १७७१ प्राविवर्षों इस्य ४८ ग्रंशयोः+ से प्रारबम्मेलने विजयास्य पार्श्वभुजः स्यात् । एमितरत्र पूलिका पाश्र्वभुजः चानेसण्या ॥ ७ ॥ अब जीवा की चूलिका और धनुष की पाश्च भुजा कहते हैं : गापार्ष:-दक्षिणोतर में पूर्वापर जोवा को ( परस्पर में ) घटा कर अवशेष को आषा करणे पर जो लन्ध प्राप्त हो उसका 'चूलिका' यह नाम होता है, और पूर्वापर धनुष को परस्पर घटा कर अवशेष को प्राधा करने.पर जो लब्ध प्राप्त हो उसका नाम पार्थ भुजा है ।। ७७८ ॥
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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