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________________ त्रिकोनसार पापा विशेषार्ष:-दक्षिण में भरतादि क्षेत्र और हिमवन् मावि पर्वतों की तथा उत्तर में ऐरावतादि क्षेत्र और शिखरिन् आदि पर्वतों की जो पूर्वापर अर्थात् पहिले मौर पीछे कही हुई जीया के प्रमाण में जो अधिक प्रमाण वाली जोवा है उसमें से होन प्रमाण वाली को घटाकर अवशेष को आधा करने पर बो लब्ध प्राप्त हो जसका नाम चूलिका है तथा पूर्वापर कहे हुए धनुष के अधिक प्रमाण में से होन प्रमाण को घटाकर अवशेष का आधा करने पर जो लब्ध प्राव हो उसका नाम पार भुना है । जैसेदक्षिण भरत की जीवा का प्रमाण ९७४८५३ योजन है और विजया की जीवा का प्रमाण १०.२० योजन है, जो दक्षिण भरत की जीवा के प्रमाण से अधिक प्रमाण वाली है, अतः १०७२०१६ - ९७४८९२९७२ योजन अवशेष रहे, किन्तु अंशों में से २३ अंश नहीं घट सकते अतः।७२ प्रशो में से १ अङ्क ग्रहण करने पर १७१ योजन रहे मोर उस एक मंक को भिन्न रूप करने पर हए । इनमें से 3 ग्रंश घटाने पर {2-13)- अवशेष बचे जो में जोड़ देने से ( + ) अर्थात् १७११६ योजन अवशेष रहे। इस राशि का अर्घ भाग करना है किन्तु विषम राशि का अधं भाग नहीं होता, अतः ९१ में से १ अङ्क घटा कर शेष १७. का अधं भाग ४८५ योजन और ग्रंश का अध मागहा । घटाए हए .१ अंक का अर्धभाग होता है। इस और २ अंश को समच्छेद करने पर (३४)-32 और (ix) प्राप्त हुए । इन दोनों को मिलाने पर (32+3 ) अर्थात् ४८५३ योजन विजया पर्वत को चूलिका का प्रमाण है। अथवा :-विजया की जीवा २०१11 (१.७२०) योजन और दक्षिण भरत की "" (५७४८५३) योजन है इसे घटा कर आधा करने पर चलिका का प्रमाण प्राप्त होता है, अत:५०१५ - १८५१२४= २०३८५३२४ = "1" (७१२९) x g " अर्थात् ४८५३ योनन विजया की चूलिका का प्रमाण है। दक्षिण भरत का चाप ९७६६२० योजन और विजयाचं का चाप १.७४३१५ योजन है। इन्हें परस्पर घटाने से ७७ योजन अवशेष रहे। इन्हें पूर्वोक्त विधि के अनुसार आधा करने पर ४८ पोजन हुआ । शेष प्रश को मंशी में पूर्वोक्त विधि से मिलाने पर अर्थात ४८८ योजन बिजया पर्वत की पारवं भुजा का प्रमाण है। अथवा:-विजया का धनुष २०१३३२ मोजन और दक्षिण भरत का धनुष ०२५५५ योजन है। इन्हें परस्पर घटाने पर २०१२ - १८५५५५=१५५*x'='' अर्थात् ४ योजन विजया की पार्श्व भुजा का प्रमाण है । इसी प्रकार विदेह पर्यन्त अन्य सभी क्षेत्रों और पर्वतों की चूलिका का प्रमाण निम्न प्रकार है तथा उत्तर विदेह से उत्तर ऐरावत पर्यन्त की चलिका का प्रमाण पयाक्रम इन्ही क्षेत्र पर्वतों के सदृश है : [पया चार्ट अगले पृष्ठ पर देखिए ]
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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