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बिलोकसार
पापा : ७
भरत क्षेत्र के अन्त में जीवा चौदह हजार चार सौ इकहत्तर योजन बोस पाच कला (१४७१ यो०) प्रमाण है, तथा उसी का चाप चौदह हजार पाँच सौ अट्ठाईस पोजन औष ग्यारह कला ( १४५२८ यो.) प्रमाण है।
हिमवत् पर्वत के अन्त में जीवा चोबोस इजार नौ सो बत्तीस योजन और कुछ कम एक कला ( २४९३२ यो०) प्रमाण है तथा उसी का चाप पच्चीस हजार दो सौ तीस योगन चार कला ( २५२३० यो०) प्रमाण है।
हैमवत क्षेत्र के अन्त में जीवा संतीस हजार छह सौ चौहत्तर योजन और कुछ कम सोलह कला ( ३७६७४१७ यो ) प्रमाण है, तथा धनुष अत्तीस हजार सात सौ चालीस पोजन और कुछ अधिक दश कला ( ३८७४० यो०) प्रमाण है।
महाहिमवत् पवंत के अन्त में जोवा ओपन हजार नौ सौ इकतीस योजन और छह कला ( ५३९३१२५ पो.) प्रमाण है तथा चाप सनादन हजार दो सौ तेरावे योजन और बश कला (१७२६३५९ यो०) प्रमाण है।
हरिक्षेत्र में जीवा तिहत्तर हजार नौ सौ एक योजन और सत्रह कला ( ७३६-११ यो०) प्रमाण है, तथा चाप चौरासी हजार सोलह योजन और धार कला ( ८४.१६. यो. ) प्रमाण है।
निषध पर्वत के अन्त में जीवा १४१५६३३ योजन प्रमाण है तथा चाप एक लाख चौबीस हजार तीन सौ छियालीस योजन और नौ कला १२४३४६२, योजन प्रमाण है ॥ ७६६-४७६ ।।
जीवद विदेहमज्मे लक्खा परिहिदलमेवमवरद्ध । माहवचंदृद्धरिया गुणधम्मपसिद्ध सम्वकला ॥७७७।। भीयातयं विदेहमध्ये लक्षं परिधिलं एवमपरार्धे ।
माधवचन्द्रोद्धता: गुणधर्मप्रसिद्धाः सर्वकलाः ।। ७७७ ॥ जीव । विदेशमध्ये जीवा धनुरिस्येतद्वयं पाप लभयोजनानि । ल जम्बूद्वीपपरिये ( ३१६२२७ को ३० १२८ अं १३ भा) पंधमारणं न स्यात १५८११४ एवमेवरावताचपरायेऽपि गुरषो ज्या धर्मो धनुः सयोः प्रसिधाः पूर्वोक्ता: स: कला योजनाकामसंनया. माषणबहान १९ उम्रताभक्ता पक्षे गुरणेषु धर्मे । प्रतियाः सर्वाः कला भाषचन्द्रविद्येशिनोवताः प्रकाशिताः ॥७७७॥
गाथार्थ :-विदेह के मध्य में जीवा और धनुष ये दोनों कम से एक लाख योजन और जम्बू होप की परिधि के अभाग प्रमागा हैं। ऐरावतादि भेषों और मवम्बू दीप में भी ऐसा ही मानना,